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ग्राम देखनेके लिये चलदिये । उन्हें जाते देख परिवारके मनुप्योंने बहुत कुछ मनाई की। किं तु कुमारके ध्यानमें एक न आई। वे शीघ्र ही नंदिग्राममें दाखिल होगये । मध्य नगर में पहुंचते ही दैवसे उनकी मुलाकात नंदिनाथसे होगई उसै चिंतासे व्याकल एवं म्लान देख कुमारने चट घर पूछा ।
हे विप्रोंके सरदार! आपका मुख क्या फीका हो रहा है ! आप किस उधेड़ वुनमें लगे हुवे हैं ? इसनगर में सर्व मनुष्य चिंता ग्रस्त ही प्रतीत होते हैं यह क्या बात है ? । कुमारके ऐसे उत्तम वचन सुन, और वचनोंसे उसै बुद्धिमान भी जान, नंदिनाथने विनम्र वचनों में उत्तर दिया ।
महानुभाव ! राजगृहके स्वामी महाराज श्रेणिकने एक बकरा हमारे पास भेजा है। उन्होंने यह कड़ी आज्ञा भी दी है कि- नंदिग्राम के निवासी विप्र इस बकरेको खूब खिलावे पिलावे । किंतु यह वकरा एकासा ही रहै । नतो मोटा होने पावै, और न लटने पावे । यदि यह वकरा लटगया अथवा पुष्ट हो गया तो नंदिग्राम छीन लिया जायगा । हे कुमार ! महाराजकी इस आज्ञा का पालन हमसे होना कठिन जान पड़ता है । इसलिये इस गांव के निवासी हम सब ब्राह्मण चिंतासे व्यग्र हो रहे हैं ।
नंदनाथके ऐसे विनय युक्त वचन सुननेसे कुमार अभय का हृदय करुणासे गद गद हो गया । उन्होंने इस कामको कुछ काम न समझ ब्राह्मणोंको इस प्रकार समझा दिया । हे विप्रो !
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