________________
~
~
( १९० ) अभयके चित्त पर प्रभाव जमादिया । उन्हें जबरन प्रार्थना स्वीकार करनी पड़ी। और ब्राह्मणोंपर दयाकर नंदिगाममें कुछ दिन ठहरना भी निश्चित करलिया । उधर जिससमय महाराजने बकरेको ज्योंका त्यों देखा । वे गहरी चिंतामें पड़गये । अपने प्रयत्नकी सफलता न देख उन्हें अति क्रोध आगया।वे सोचने लगे। जब नंदिगाममें ब्राह्मण इतने बुध्दिमान हैं। तब उनको कैसे नंदिगामसे निकाला जाय? । तथा क्षण एक ऐसा सोचकर शीघ्र ही उन्होंने फिर एक दूत बुलाया। और उससे यह कहा-तुम अभी नंदिगाम जाओ। और वहांके निवासी ब्राह्मणोंसे कहो किमहाराजने यह आज्ञादी है कि नंदिगामनिवासी बाह्मण शीघ्र एक वावड़ी राजगृह नगर पहुंचादें । नहीं तो उनको कष्टका सामना करना पड़ेगा। ___महाराजकी आज्ञा पाते ही दूत चला। और नंदिगाम में पहुंचकर शीघ्र ही उसने ब्राह्मणोंसे कहा। हे विप्रो ! महाराजने नंदिगामसे एक वावड़ी राजगृह नगर मगाई है । आपलोगों को यह कड़ी आज्ञा दी है कि आप उसे शीघ्र पहुंचादे । नहीं तो तुम्हें नगरसे जाना पड़ेगा।
दृतके मुखसे महाराजकीए सी कठिन आज्ञा सुन, नंदिग्राम निवासी विप्र दातोंमें उंगली दवाने लगे। वे विचारने लगे कि अवके महाराजने कठिन अटकाई । वावड़ीका जाना तो सर्वथा असंभव है। मालूम होताहै महाराजका कोप अनिवार्य है। अब
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com