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यदि राजा ही अन्यायी होवे तो कभी भी उसके अनुयायी लोग न्यायवान नहीं होसकते । वे अवश्य अन्याय मार्ग में प्रवृत्त होजाते हैं । कृपानाथ ! यदि आप नंदिग्राम के ब्राह्मणोंको नंदि ग्रामसे निकालना ही चाहते हैं तो उन्हें न्याय मार्ग से ही निकालें | न्याय मार्गके विना आश्रय किये आपको ब्राह्मणों का निकालना उचित नहीं ।
मंत्रियोंके ऐसे नीति युक्त वचन सुन महाराज श्रेणिकका क्रोध शांत होगया । कुछ समय पहिले जो महाराज ब्राह्मणोंको विना विचारे ही निकालना चाहते थे । वह विचार उनके मस्तक से हट गया । अब उनके चित्तमें ये संकल्प विकल्प उठने लगे । यदि मैं यही ब्राह्मणों को निकाल दूंगा तो लोग मेरी निंदा करेंगे । मेरा राज्य भी अनीतिराज्य समझा जायगा । इसलिये प्रथम ब्राह्मणों को दोषी सिद्ध कर देना चाहिये । पश्चात् उन्हे निकालने में कोई दोष नहीं । तथा तदनुसार महाराजने ब्राह्मणों को दोषी बनानेके अनेक उपाय सोचे। उन सबमें प्रथम उपाय यह किया कि एक बकरा मगवाया । और कई एक चतुर सेवकोंको बुला कर, एवं उन्हे वकारा सोंपकर, यह आज्ञा दी । जाओ इस वकरे को शीघ्र नंदिग्राम ब्राह्मणों को दे आओ। उनसे यह कहना यह वकरा महाराज श्रेणिकने भेजा है । इसे खूब खिलाया पिलाया जाय। किंतु इसबात पर ध्यान रहै। न तो यह लटने पावे और न अवाद ही होवे । यदि यह लटगया वा अवाद
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