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और नंदश्रीको जातेहुवे कालका भी पता न लगा।
बाद कुछ दिनके उत्तमगुणयुक्त कुमारके साथ क्रीड़ा कर ते करते रानी नंदश्रीके धर्मके प्रभावसे गर्भ रह गया।तथा सुंदर आकारका धारक शुभलक्षणोंकर युक्त वह उदर में स्थित जीवदिनों दिन बढ़ने लगा।गर्भके प्रभावसे रानी नंदश्रीके आतेशय मनोहर अंग पर कुछ सफेदी छागई।स्तनोंके अग्रभाग ( चुचुक ) काले पड़ गये।उसे किसी प्रकारके भूषण भी नहीं रुचने लगे। तथा भूषण रहित वह ऐसी शोभित होने लगी जैसा नक्षत्रोंके अस्त होजानेपर प्रभात शोभित होता है । एवं गर्भके भारसे नंदश्रीको गतिभी अधिक मंद होगई । भोजन भी बहुत कम रुचने लगा । और उसको अपने अंगमें ग्लानिभी होने लगी । एवं मतवाले हाथोंके समान गमनकरनेवाली, मुखरूपी चंद्रमासे शोभित, मनोहरांगी नंदश्रीके अंगमें गर्भसे होनेवाले मनोहरचिह्नभी प्रकटित होनेलगे । कदाचित् नंदश्रीको सात दिन पर्यंत अभयदानका सूचक उत्तम दोहला हुवा।अपने घरकी स्थिति देख उस दोहलाकी पूर्ति अतिकठिन जानकर वह भारी चिता करने लगी।और जैसी पानीके अभावसे उत्तम लता कुमला जाती है उसीप्रकार उस का अंग भी चिंता से सर्वथा कुम्हलाने लगा।
किसीसमय कुमार श्रोणककी दृष्टि नंदश्री पर पड़ी।उदास एवं कांति रहित रानी नंदश्रीकी देख उन्हे अति दुःख हुवा। वे अपने मनमें विचार करने लगे-अतिशय मनोहर एवं देदीप्यमान
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