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इसप्रकार भविष्यत् कालमें होनेवाले भगवान श्रीपद्मनाभके जीव महाराज श्रेणिकको राज्यकी प्राप्ति वतलानेवाला
पांचवा सर्ग समाप्त हुवा
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छठवा सर्गः केवलज्ञानकी कृपासे ससस्स जीवोंको याथार्थ उपदेश देनेवाले, परम दयालु, भलेप्रकार पदार्थोंके स्वरूपको प्रकाश करनेवाले, अंतिम तीर्थंकर श्रीवर्द्धमान स्वामीको नमस्कार है___ अनंतर इसके समस्त शत्रुओंसे रहित, प्रजाके प्रेमपात्र, अनेक उत्तमोत्तम गुणोंसे मंडित, वे महाराज श्रेणिक भलेप्रकार नीतिपूर्वक प्रजाका पालन करने लगे। उनके राज्य करते समय न तो राज्यमें किसीप्रकारकी अनीति थी । और न किसी प्रकारका भय ही था। किं तु प्रजा अच्छीतरह सुखानुभव करती थी । पहिले महाराज बौद्धमतके सच्चे भक्त हो चुके थे। इसलिये
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