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मारके वचनोंपर रत्तीभर भी ध्यान नहीं दिया । और उल्टा नाराज होकर जंबुकुमार से लड़नेकोलिये तयार होगया । जंबुकुमारभी किसी कदर कम न था वह भी शीघ्र युद्धार्थ तयार होगया । और कुछ समयपर्यंत युद्धकर जंबुकुमारने रत्नचूलको बांध लिया । उसकी आठ हजार सेनाको काट पीटकर नष्ट कर दिया । एवं उसे राजा मृगांके चरणोंमें डार जो कुछ वृतांत हुवा था सारा कह सुनाया । तथा यह भी कहा कि महाराज श्रेणिकभी केरला नगरीकी ओर आ रहे हैं ।
जंबुकुमारका यह असाधारण कृत्य देख राजा मृगांक अति प्रसन्न हुवे | उन्होने जंबुकुमारकी वारंवार प्रशंसाकी । एवं जंबुकुमारकी अनुमति पूर्वक राजा मृगांकने राजा रत्नचूल एवं पांचसों विमानोंके साथ कन्या विलासवतीको लेकर राजगृहकी ओर प्रस्थान कर दिया ।
महाराज उपश्रेणिक तो कुरलाचलकी तलहटीमें ठहरे ही थे । जिससमय राजा मृगांकके विमान कुरलाचलकी तलहटी में पहुंचे। जंत्र कुमार की दृष्टि राजा श्रेणिक पर पड़गई। महाराजको देख राजा मृगांक सबके साथ शीघ्रही वहां उतर पड़े । उन सबने भक्तिभावसे महाराज श्रेणिकको नमस्कार किया । और परस्पर कुशल पूछने लगे । तथा कुशल पूछने के बाद शुभ मुहूर्त में कन्या तिलकवती का महाराज श्रेणिकके साथ विवाह भी होगया । विवाह के बाद राजा मृगांकने केरला नगरीकी ओर लौट -
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