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पीली ध्वजा एवं तोरणोंसे शोभित राजमंदिर के पास जा पहुचें ।
राज मंदिर में प्रवेशकर कुमारने अपनी पूज्य माता आदिको भक्ति पूर्वक नमस्कार किया । तथा अन्य जो परिचित मनुष्य थे उनसे भी यथा योग्य मिले मैंटे। कुछ दिन बाद मंत्रियोंकी अनुमति पूर्वक कुमारका राज्याभिषेक किया गया । कुमार श्रेणिक अब महाराज श्रेणिक कहे जाने लगे । तथा अनेक राजाओंसे पूजित, अतिशयप्रतापी, समस्त शत्रुओंसे रहित, महाराज श्रेणिक, मगध देशका नीति पूर्वक राज्य करने लग गये । इस प्रकार अपने पूर्वोपार्जित धर्मके माहात्म्यसे राज्य विभूतिको पाकर समस्तजनों से मान्य, अनेक उत्तमोत्तम गुणों से भूषित, नीतिपूर्वक राज्य चलाने वाले, अतिशय देदीप्यमान शरीरके धारक, महाराज श्रोणिक अतिशय आनंदको प्राप्त हुवे,
जीवों का संसार में यदि परममित्र हैं तो धर्म है देखो कहां तो महाराज श्रेणिकको राजगृह नगर छोड़कर सेठि इंद्रदत्त के यहां रहना पड़ा था और कहां फिर उसी मगधदेशके राजा वन गये । इसलिये उत्तम पुरुषों को चाहिये कि वे किसी अवस्था में धर्मको न छोड़े क्यों कि संसार में मनुष्यों को धर्मसे उत्तम बुद्धिकी प्राप्ति होती है । धर्मसे ही अविनाशी सुख मिलता है | देवेंद्र आदि उत्तम पदोंकी प्राप्ति भी धर्मसे ही होती है और धर्मकी कृपासे ही उत्तम कुलमें जन्म मिलता है ।
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