________________
( ८८ )
सेठि इंद्रदत्त के घर पुत्री नंदश्रीसे धेवता हुवा है यह समाचार सारे नगर में फैलगया। सेठि इंद्रदत्त के घर कामिनी मनोहर गति गाने लगीं । बंदीजन पुत्रकी स्तुति करने लगे । पुत्रके आनंद में मनोहर शब्द करनेवाले अनेक बाजे भीं बजने लगे । बालकके गर्भस्थ होनेपर नंदश्रीको अभयदानका दोहला हुवा था । इसलिये उस दिनको लक्ष्यकर सेठि इंद्रदत्त के कुटंबी मनुप्योंने बालकका नाम अभय कुमार रखदिया । एवं जैसा रात्रि बिकासी कमलोंको आनन्द देनेवाला चंद्रमा दिनों दिन बढ़ता चला जाता है वैसा ही अतिशय देदीप्यमान शरीरका धारक समस्त भूमंडलको हषार्यमान करनेवाला वह कुमार भी दिनोंदिन बढ़ने लगा । कुटंबजिन दूध पान आदिसे बालक की सेवा करने लगे । आनंदसे खिलाने लगे । इसलिये उस बालक से उसके पिता माताको और भी विशेष हर्ष होने लगा । कुछ दिनवाद अभय कुमारने अपनी बालक अवस्था छोड़ कुमार अवस्था में पदार्पण किया । और उससमय तेजस्वी कुमार अभयने थोड़ेही कालमें अपने बुद्धिबलसे बात की बात में समस्त शास्त्रोंका पार पालिया । वह असधारण विद्वान होगया । इसप्रकार कुमार श्रोणिकके साथ रानी नन्दश्री नाना प्रकार के भोग विलास करने लगी । एवं कुमार भी कांता नन्दीके साथ भांति भांति के भोग भोगने लगे तथा भोग विलास में मस्त, वे दोनों दंपती जाते हुवे कालकी भी परवा नहीं करने लगे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com