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इसका ललाट है । कुमार श्रोणकका संसारम अद्भुत पुण्य मालूम पड़ता है जिससे कि इस कुमारको ऐसे स्त्रीरत्नकी प्राप्ति हुई है। तथा कुमारको देखकर लोग यह कहने लगे कि इस नंदश्रीने पूर्व जन्ममें क्या कोई उत्तम तप किया था ! अथवा किसी उत्तम व्रतको धारण किया था ! वा इष्टपदार्थोंके देनेवाले शीलका इसने परभवमें आश्रय किया था ! अथवा इसने उत्तम पात्रों में पवित्र दान दिया था ! जिससे इसको ऐसे उत्तम रूपवान गुणवान पतिकी प्राप्ति हुई है । इसप्रकार धर्मके प्रभावसे समातलोक द्वारा प्रशंसित, अतिशय हर्पितचित्त अत्यंत दीप्ति युक्त देहके धारक, वे दोनों स्त्री पुरुष भली भांति सुखका अनुनय करने लगे। इसमकार होनेवाले श्रीपद्मनाभभगवानके पर्वभवके जीव महाराज श्रेणिकका कुमारी नदंश्रीके साथ विवाह
वर्णनकरनेवाला चौथा सर्ग समाप्त हुवा ।
पांचवां सर्ग जित उत्तप्त धर्मकी कृपासे संसारमें उनदोनों दंपतीको अतिशय सुख मिला । धर्माला पुरुषों को अनेक विभूतिदेने वाले उस परम पवित्र धर्मको मैं मस्तक झुका कर नमस्कार
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