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रहे । तथा जिससमय कुमार भोजन करचुके उससमय कुमारने पान खाया । इस प्रकार कुमारके चातुर्यसे अतिप्रसन्न, उनके गुणोंमें अतिशय आसक्त, कुमारी नंदश्री जिसप्रकार राज हंसके पास बैठी हुई राजहंसी शोभित होती है कुमारके समीपमें बैठी हुई अत्यंत शोभित होने लगी ।
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इन समस्त बातोंके बाद कुमारीके मनमें फिर कुमार की बुद्धिकी परीक्षाका कौतूहल उठा उसने शीघ्र एक अति टेड़े छेद का मूंगा कुमारको दिया और उसमें डोरा पोने के लिये निवेदन किया, कुमारी द्वारा दियेहुवे इस कार्यको कठिन कार्य जान क्षणभर तो कुमार उसके, पोनेकेलिये विचार करते रहै पीछे भले प्रकार सोचविचार कर उस डोरे के मुख पर थोड़ा गुड़ लपेट दिया और अपनी शक्ति के अनुसार मूंगा छेद में उसको प्रविष्ट कर चीटियों के विलेपर उसे जाकर रख दिया। गुड़की आशासे जब चीटियोंने डोरे को खींचकर पार कर दिया तव डोरा पार हुवा जान कर कुमार श्रेणिकने मूंगेको लाकर नंदश्रीको दे दिया । कुमारी नंदश्री कुमार श्रोणिकका यह अपूर्व चातुर्य देख अति प्रसन्न हुई उसका मन कुमार में आसक्त होगया । यहांतक कि कुमारके श्रेष्ठगुणोंसे, उनकी रूप संपदा से कामदेव भी बुरीरीति से उसे सताने लग गया ।
सेठ इन्द्रदत्त को यह पता लगा कि कुमारी नंद श्री कुमार श्रेणिक पर आसक्त है । कुमार श्रोणिक को वह अपना बल्लभ बना चुकी ।
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