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( ७८ ) कर एवं उन पूवों को सच ही देवमयी जानकर ज्वारियोंके मनमें उनके खरीदने की इच्छा हुई । और खेलमें विजय एवं अधिक धनकी आशासे उनमें से एक ज्वारीने मुहमांगी कीमत देकर पूर्वोको तत्काल खरीद लिया । और कीमत अदाकरदी। कीमतका रूपया लेकर, और कुमारकी प्रतिज्ञानुसार भोजनकेलिये उसे पर्याप्त जानकर निपुणमतीने उसीसमय नंदश्रीको जाकर चुपचाप दे दिया। ____ जिससमय नंदश्रीने पूोंकी कीमतको देखा तो उस को बड़ी प्रसन्नता हुई । और उसने भांति भांतिके मधुर भोजन बनाना प्रारंभ कर दिया । जिससमय वह भोजन बना चुकी उसने भोजन के लिये कुमारको बुला भी लिया। भोजनका बुलावा मुन नंदश्रीका रूप देखनके अति लोलुपी, अपने मनमें अति प्रसन्न, कुमार पाकशालामें चट जा धमके । कुमारीने कुमार को देखतेही आदर पूर्वक आसन दिया और प्रेम पूर्वक भोजन कराना आरंभ कर दिया । कभी तो वह कुमारी भोजन में भग्न कुमार को खैरि आदि पदार्थोंके उतम रसोंसे परि पूर्ण, अनेक मसालोंसे युक्त, अति मधुर वरों के टुकड़ों को खिलाती हुई। और कभी अपनी चतुरता से भांति भांतिके फलोंका उसने भोजन कराया। तथा कभी कभी उसने दूध दही मिश्चित नानाप्रकार के व्यंजन बनाकर कुमार को खिलाये । एवं कमार भी उसके चातुर्यपर विचार करते करते भोजन करते
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