________________
Wuuuuuuuuuuuuu
शल एवं ऊंचे दर्जेका पांडित्य कुमार श्रेणिकमें है वैसा कौशल पांडित्य अन्यत्र नहीं । तथा ऐसा कहती कहती अपने रूपसे लक्ष्मीकोभी नीचैकरने वाली. कमारके गुणोंपर अतिशय मुग्ध कुमारी नंदश्रीने कामदेवसे भी अतिमनोहर, कुमार श्रेणिको भीतर घरमें जाकर ठहरादिया और विनयपूर्वक यह निवेदनभी किया कि हे महाभाग कृपाकर आज आप मेरे मंदिरमें ही भोजन करें। हे उत्तमकांतिको धारणकरनेवाले प्रभो आज आप मेरे ही अतिथि बने । मुझपर प्रसन्न हों। अयि प्राज्ञवर हमारे अत्यंत शुभभाग्यके उदयसे आपका यहां पधारना हुवा है। हे मेरी समन्त अभिलाषाओंके कल्पद्रुम ! आप मेरे अतिथि वनकर मुझपर शीघ्र कृपाकरें । संसारमें बड़े भाग्यके उदयसे इष्टजनोंका संयोग होता है । जो मनुष्य अत्यंत दुर्लभ इष्टजनको पाकर भी उनकी भलेप्रकार सेवा सत्कार नहीं करते उन्हे भाग्यहीन समझना चाहिये इसलिये हे पुण्यात्मन् भोजनके लिये मेरे ऊपर आप प्रसन्न होवे मैं आपसे भोजनके लिये आदरपूर्वक आग्रह कर रही हूं।
कुमारीके ऐसे अतिशय आदर पूर्ण वचन सुन कुमार श्रेणिकने अपनी मधुरवाणीसे कहा-सुभगे ! संसारमें तू अति चतुर सुनी जाती है हे उत्तमलक्षणेको धारण करनेवाली पंडिते! हे वाले! तथा हे मनोहरांगी ! मैं भोजन जव करूगा जव मेरी प्रतिज्ञानुसार भोजन बनेगा। वह मेरी प्रतिज्ञा यहीहै मेरे हाथमें ये
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com