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भी मेरा कोई नुक्सान नहीं। ऐसा क्षण एक अपने मनमें पक्का निश्चय कर अतिशय बुद्धिमान, भलेप्रकार लोकचातुर्यमें पंडित, कुमार श्रेणिकने, उसकीचड़में होकर ही महल में प्रवेश किया। ___कुमारके इस उत्तम चातुर्यको देखकर कुमारी नंदश्री दम रहगई। किं तु कुमारकी बुद्धिकी परीक्षाका कौतूहल अभीतक उसका समाप्त नहीं हुवा । इसलिये जिससमय कुमार उस कीचड़को लांघकर महलमें घुसे । और जिससमय नंदश्रीने उनके पावं कीचड़से लिथड़े हुवे देखे । तो फिरभी उसने किसी सखी द्वारा कीचड़ धोनेकेलिये एक चुल्लू पानी कुमारके पास भेजा । __कुमारने जिससमय कुमारी नंदश्रीद्वारा भेजा हुवा थोड़ासा पानी देखा तो देखकर उनको वड़ा आश्चर्य हुवा। वे अपने मनमें पुनः विचारने लगे कि कहांतो इतना अधिक कीचड़ ! और कहां यह न कुछजल ? इससे कैसे कीचड़ धुल सकतीहै ? । तथा क्षण एक ऐसा विचार कर । और एक वांसकी फच्चटलेकर पहिले तो.उससे उन्होंने पैरमें लगे हुवे कीचड़को खुर्चकर दूरकिया पश्चात उसनंदश्री द्वारा भेजेहुवे पानीके कुछ हिम्समें एक कपड़ा भिंगोकर उस थोड़ेसे जलसे ही उन्होने अपने पांव धोलिये
और अपने महनीय बुद्धिवलसे अनेक आश्चर्य करानेवाले कुमारने उसमेंसे भी कुछजल वचाकर कुमारीके पास भेजदिया ।
कुमारके इस चातुर्यको अपनी आखोंसे देख कुमारी नंदश्रीसे चुप न रहा गया वह एक दम कहने लगी-अहा जैसा को
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