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( ७७ ) वत्तीस ३२ चावल हैं इनवत्तीसचावलोंसे भांतिभांतिकेपकेहुवे अन्नसे मनोहर भोजन बनाकर, दूध दही हवि आदिसे परिपूर्ण, औरभी अनेक प्रकारके व्यजनोंकरयुक्त, सरस, स्वादिष्ट, पूर्वा आदिपदार्थ सहित, उत्तम भोजन जो मुझै खवावेगा उसीके यहां मैं भोजन करूंगा दूसरी जगह नहीं। ____कुमारके ऐसे प्रतिज्ञा परिपूर्ण एवं अपनी परीक्षा करनेवाले वचन सुनकर कुमारी प्रथमतो एकदम विस्मित होगई । पश्चात् उसने वड़े विनयसे कहा कि लाइये, अपने चावलोंको कृपाकर मुझे दीजिये। ____ कुमारीके आग्रहसे कुमारको चावल देने पड़े। तथा कुमार से वत्तीस चावल लेकर उनको पीसकूट कर कुमारीने उनके पूवे वनाये। उनपूर्वोको वेचनेकेलिये अपनी प्रियसखी निपुणमती को देकर वजार भेजदिया । कुमारीकी आज्ञानुसार सखी निपुणमती उनपोंको लेकर सफेद वस्त्रपहिनकर वजारकी ओर गई । और जहांपर जूवा खेला जाता था वहां पहुंचकर और किसी ज्वारीके पास जाकर उनपूवोंकी उसने इसप्रकार तारीफ करना प्रारंभ किया कि ये पूर्व अति पवित्र देवमयी हैं। जो भाग्यवान मनुष्य इनको खरीदेगा उसै अवश्य अनेक लाभ होंगे । सर्व खिलाड़ियों मैं ये पूवे खाने वालाही विशेष रीतिसे जीतेगा इसमें संदेह नहीं ।
निपुणमतीके इसप्रकार आश्चर्य भरे बचनों पर विश्वास
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