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स्नेहसे उनदोंनोंने कुशल भी पूछा थोडी देर तक कुमार उपश्रेणिकके पास बैठिकर तथा कुमारको भलीभांति प्रणामकर मंत्री मतिसागरने यह बचन कहा कि
हे कुमार आप मेरे मनोहर तथा हितकारी बचनको सुनिये आपके अपराधसे महाराज उपश्रेणिकको बड़ा भारी क्रोध उत्पन्न हुवा है वे आप पर सख्त नाराज है न जाने वे आप को क्या दंड न देवेंगे? और क्या अहित न करपाड़ेंगे क्यों कि राजाके कुपित होनेपर आपको यहां पर नहीं रहना चाहिये मंत्री मतिसागरके इसप्रकार अश्रत पूर्व बचन सुनकर कुमार श्रेणिकने उत्तर दिया कि ____ कृपकर आप बता मेरा क्या अपराध हुवा है इसप्रकार कुमारके बोलने पर मंत्री मतिसागरने उत्तरदिया कि ___जिससमय तुम सब कुमारोंके भोजन करते कुत्ते छोड़े गये थे और जिससमय समन्त पात्रोंको झूठा करदिया था उससमय तुमसे भिन्न सबकुमारतो भोजन छोड़कर चले गये थे और यह कहो तुन अकेले क्यों भोजन करते रहगये थे ? इसलिये ऐसा मालूम होता है कि महाराज की नाराजीका यही कारण हैं और यह बात ठीक भी है क्योंकि नीचताका कारण कुत्तोंसे छुवा हुवा भोजन अपवित्र भोजननही कहलाता हूं मंत्री मतिसागर की इसबातको सुनकर और कुछ हंसकर कुमारने मनाहर शब्दोंमें उत्तरादिया कि
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