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दीजिये कि, इससे जो पुत्र होगा वही राज्यका अधिकारी होगा, नहीं तो मैं अपनी इस पुत्रीका विवाह आपके साथ नहीं करूंगा । मैं ने उस तिलकचतीके सौंदर्य एवं गुणोंपर मुग्ध होकर उसके पिताको उसप्रकारका वचन ददिया था कि मैं इसीके पुत्रको राज्य दूंगा । किंतु मैंने राज्य किसको देना चाहिये, यहबात जिससमय ज्योतिषी से पूछी तो उसने अपनी ज्योतिषविद्यासे यही कहा कि इस महाराज्यका अधिकारी कुमार श्रेणिकही है । अब बताइये ऐसी दशा में मैं क्या करूं और राज्य किसको दूं । यदि मैं चलाती कुमारको राज्य न देकर कुमार श्रेणिकको राज्यप्रदानकरूं और अपने वचनका खयाल न रक्खूं तो संसार में मेरा जीवन सर्वथा निष्फल है । मुझे ऐसा मालूम होता है कि यदि मैं अपने चचनका पालन न करसकूँगा तो मेरा पहिले कमाया हुवा सब पुण्यभी बिना प्रयोजन का हैं क्योंकि मल मूत्र आदि सातधातुओंसे चनाहुवा यह शरीर पुण्यरहित निस्सार है अर्थात् किसीकामका नहीं। इसमें किसप्रिकारका संदेह नहीं कि चंचलजीवनकी अपेक्षा इसशरीरमें सत्य बचनही सार है, अर्थात् जो कहकर बचन का पालन करता है वही मनुष्य आर्य है और उत्तम है किंतु जो अपने बचन को पालन नहीं करता है वह उत्तम नहीं क्योंकि जिसमनुप्य ने संसार में अपने बचनकी रक्षा नहीं की उसने उपार्जन किये हुवे पुण्यका सर्वथा नाश कर दिया । और यहबात भी हैं कि संसार में
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