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देखकर आपसे जो यह पूछा था कि इसक्षेत्रके स्वामीने इस क्षेत्र धान्यका उपभोग कर लिया है अथवा करेगा ? वह प्रश्नभी कुमारका बड़ी बुद्धिमानीका था। क्योंकि कर्ज लेकर जो खेत वोया जाता है उसके धान्यका तो पहिले ही उपभोग करलिया जाता है। इसलिये वह भुक्त कहाजाता है । और जो खेत विना कर्ज के वोया जाता है उस खेत के धान्यको उस खेतका स्वामी भोगेगा ऐसा कहा जाता है । कुमारके प्रश्नका भी यही आशय था कि यह खेत कर्जलकर कोया गया है अथवा विनाकर्ज के ? इसलिये इस प्रश्नसेभी कुमारकी बुद्धिमानी वचनागोचर जान पड़ती है । तथा हे तात कुमारश्रेणिकने जो यह प्रश्न किया था कि हे मातुल इस वेरीके वृक्षके ऊपर कितने कांटे हैं ? सो उसका आशय यह है कि कांटे दो प्रकार के होते हैं एक सीधे दूसरे टेड़े । उसीप्रकार दुजनों के भी वचन होते हैं इसलिये यह पश्चमी कुमारश्रेणिका सर्वथा सार्थक ही था । इसलिये उक्त प्रश्नोंसे कुमार श्रेणिक अत्यंत निपुण, विद्वानोंके मनोंको हरण करनेवाला, समस्तकलाओं में प्रवीण, और अनेकप्रकार के शास्त्रों में चतुर है ऐसा समझना चाहिये । हे तात आप धैर्यरक्खें कुमार श्रेणिकको बुद्धिकी परीक्षा मैं और भी करलेती हूं किंतु कृपाकर आप मुझे यह बतावें — अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम विचारोंसे परिपूर्ण, सर्वोत्तम गुणोंकों मंदिर, वह कुमार ठहरा कहां है नंदी के इसप्रकार संतोष भरे बचन सुनकर इंद्रदत्तने उत्तर
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