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कहा था वह भी उसका कहना वहुतही उत्तम था क्योंकि जिससमय सज्जन पुरुष मार्गमें थक जाते हैं उससमय वे उस थकावटको अनेक प्रकारके कथा कौतूहलोंसे दूर करते हैं । कुमारका लक्ष्य भी उससमय थकावटके दूर करनेकेलियेही था । तथा जो कुमार नदीके जलमें जूते पहनकर घुसा था वह कामभी उसका एक वड़ी भारी बुद्धिमानी का था क्योंकि जलके भीतर बहुत से कंटक एवं पत्थरोंके टुकड़े पड़े रहते हैं, सर्प आदिक जीव भी रहते हैं । यदि जलमें जूता पहिनकर प्रवेश न किया जाय तो कंटक एवं पत्थरोंके टुकड़ों के लगजानेका भयरहता है । सर्प आदि जीवोंके काटने का भी भयरहता है । इसलिये कुमारका जल में जूता पहनकर घुसना सर्वथा योग्यही था । तथा हे पिता ! कुमार, वृक्षकी छायामें जो छत्री लगाकर बैठा था उसका वह कार्य भी एक बड़ी भारी बुद्धिमानीको प्रकट करने वाला था क्योंकि वृक्ष की छाया में छत्रीलगाकर न बैठे जाने पर पक्षी आदि जीवोंकी वीट गिरनेकी संभावना रहती है इसलिये वृक्षकी छायामें छत्री लगाकर बैठना भी कुमारका सर्वथा योग्य था । तथा अति मनोहर नगरको देखकर कुमारने जो आपसे यह प्रश्नकिया था कि 'हे मातुल यह नगर उजड़ा हुवा है कि बसा हुवा ? उसका आशय भी बहुत दूरतक था क्योंकि भलेप्रकार वसा हुवा नगर वहीं कहाजाता है, जो नगर उत्तम धर्मात्मा मनुष्योंसे जिन प्रतिनिम्ब, जिन चैत्यालय, एवं उत्तम
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