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( ७२ ) जाकर जो जो कुमार श्रेणिकका चातुर्य उसने देखा था । सब कह सुनाया । कुमारी नंदश्री निपुणवतीसे कुमारके चातुर्यकी प्रशंसा सुनकर शीघूही अपने पिताके पासगई और जो कुमार श्रेणिकका चातुर्य उसके पिताका आश्चर्यका करने वाला था उसै सेठि इंद्रदत्तको जा सुनाया। और यह कहा कि हे तात कुमार श्रेणिक अत्यंत गुणा हैं, ज्ञानवान हैं, समस्त जगतके चातुर्योमे प्रवीण हैं, कोक शास्त्रके भी ज्ञाता हैं और अनेक प्रकारकी कलाओं को भी जानने वाले हैं इसमें किसी प्रकारका संदेह नहीं । इसलिये आप कुमार के पास जांय
और शीघ्रही यहांपर उनको लिवाकर लेआवे । आप उन्हें पागल न समझे क्योंकि जिससमय आप कुमारके साथ साथ आये थे उससमय जिह्वारथ आदि वाक्योंसे कुमार क्रीड़ा करते हुवे आपके साथमें आये थे । और उन वाक्योंसे कुमारने अपना चातुर्य आपको जतलाया था। उनमें स्वाभाविक, मनोहर, एवं अनेक प्रकारके कल्याणोंको करनेवाले अनेक गुण विद्यमान हैं। ___ इधर कुमारके विषयमें नंदश्री तो यह कह रही थी उधर कमारने तिलकमताके चले जानेपर पहिले तो उस तेलसे अपने शरीरका अच्छी तरह मदन किया । अंजनके समान काले वालोंमें उसे अच्छी तरह लगाया। और इच्छा पूर्वक उस तलाबमें स्नान किया पीछे वहांसे नगरकी और चल दिये। स्वर्ग
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