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दिया है सुते ! जिसकुमारके विषय में तूने मुझे पूछा है अतिशय रूपवान एवं युवा वह कुमार इसनगरके तलाब के किनारे पर ठहरा हुवा है । मुखसे ऐसे वचन सुनतेही कुमारको ताला - के किनारे ठहरा हुवा जानकर नंदश्री शीघ्रही भगती भगती जो पर मनुष्य के मनके अभिप्रायों के जाननेमें अतिशय प्रवीण थी अपनी प्यारी सखी निपुणमती के पासगई । और निपुणमती के पास पहुंचकर यह कहा कि हे लम्बे लम्बे नखोंको धारण करने वाली प्रियसखी निगुणमती ! जहांपर अत्यंत रूपवान कुमार श्रेणिक वैठे हैं वहांपर तू शोघ्र जा । और उनको आनंद पूर्वक यहां लिवाले आ । प्रियतमा सखी ! इसबात में जरा विलम्ब न हो । कुमारी नंदश्री की यह बात सुनकर प्रथमतो निपुणमती सखीने खूब अपना शृंगार किया । पश्चात् वह न खमे तेलभरकर कुमारीकी आज्ञा नुसार जिसस्थानपर कुमार श्रमिक विराजमानथे वहां पर गई । वहां कुमारको बैठे हुवे देखकर एवं उनके शरीरकी अपूर्व शोभाको निहारकर उसने अति मधुर वाणी से कुमारसे कहा हे कुमार आप प्रसन्न तो हैं ? क्या पूर्णचंद्रमा के समान मुखको धारण करनेवाले आपही सेठि इंद्रदत्त के साथ आये हैं ? |
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निपुणमतीके इसप्रकार चित्ताकर्षक बचन सुन कुमार चुप न रहसके | उन्होने शीघ्र ही उत्तर दिया कि हे चन्द्रवदनी ! आवले ! मैं ही सेठि इंन्द्रदत्त के साथ आया हूं जो कुछ काम होवे वेरोकटोक आप कहैं और किसी बातका विचार न करें ।
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