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( ४९ ) __ हे मंत्रिन् कुत्ताओंको बुद्धिपूर्वक हटाकर मुझे यत्नसे भलेप्रकार रक्षित भोजन करना ही योग्य था इसीलिये मैंने ऐसा किया था क्योंकि जो कुमार अपने भोजनपात्रोंकी, न कुछ वलवान कुत्तोंसे भी रक्षा नहीं करसकते वे कुमार राजसंतान अर्थात् प्रजाकी क्या रक्षाकरसकते हैं । इसलिये जो आपने यह बात कही है कि तुमने कुत्तोंका छूवाहुवा भोजनकिया इसलिये महाराज तुम पर नाराज हैं यह बात तुम्हें बुद्धिमान नहीं सूचित करती। कुमारके इसप्रकार न्याययुक्त वचन सुनकर समस्तदुष्कार्योंका भलेप्रकार जानकार भी वह मंत्री फिर अतिशय बुद्धिमान श्रेणिक कुमारसे वोला। __ हे बुद्धिमान कुमार तुम्हें इससमय न्याय एवं अन्यायके विचारनेकी कोई आवश्यकता नहीं। महाराज का क्रोध इससमय
अनिवार्य और आश्चर्यकारी है अब तुम यही काम करो कि थोड़े दिनके लिये इसदेशसे चलेजाओ और राजमंदिरमें न रहो क्योंकि यह नियम हैं कि संसारमें राजाके क्रोधके सामने, कुलीन भी नीच कुलमें उत्पन्न हुवा कहलाता है। नीतियुक्त अनीतियुक्त कहाजाता है । और पंडितभी बज्रमूर्ख कहाजाता है । प्यारे कुमार श्रेणिक । यदि तुम राज्य ही प्राप्तकरना चाहते हो तो न तो तुम्हें. देशसे अलगहोनेमें किसीबातका विचार करनाचाहिये, और न किसी प्रकारकी भावना ही करनी चाहिये किं तु जैसे वने वैसे इससमय शीघ्र ही इस देश से तुम्हें चलाजाना
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