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होता है । संसारमें धर्मसे प्रिय वस्तुओं का समागम होता है इसलिये जिन मनुष्योंकी उपर्युक्त बस्तुओंके पानेकी अभिलाषा है उन्हें चाहिये कि वे सदा अपनी बुद्धिको धर्ममें ही लगावें इसप्रकार भविष्यत् कालमें होनेवाले श्रीपद्मनाभ तीर्थंकरके जीव श्रीमहाराज श्रेणिक चरित्रमें कुमार श्रेणिकका राजग्रनगर से निष्कासन कहनेवाला तीसरा सर्ग समाप्त हुवा
अनंतर इसके जिससमय सेठि इंद्रदत्त वेणपद्म नगरके तलाबके पास पहुंचे तो वहीं से उन्होंने वेणपद्म नगरको देखा । तथा जिस वेणपद्म नगरकी स्त्रियोंके मुखचंद्रमा मनोहर, कामीजनोंके मन तृप्त करनवाले थे, उनकी मनोहरताके सामने चंद्रमा अपने को कुछ भी मनोहर नही मानता था और लज्जित हो रात दिन जहां तहां घूमता फिरता था । तथा जिसनगर के निवासी मनुष्य सदा पुण्यकर्ममें तत्पर, दानी, भोगी, धीर वीर, और जिनेन्द्र भगवानकी आज्ञा के भलीभांति पालन करने वाले थे, ऐसे उस सर्वोत्तम नगरकी शोभा देखकर वे अति प्रसन्न हुवे | और कुमार श्रोणिकसे कहने लगे हे कुमार इसनगरमें आप क्या करेंगे ? कहां पर निवास करेंगे ? मुझे कहैं । इंद्रदत्तकी यहबात सुनकर कुमार श्रेणिकने उत्तर दिया कि हे वणिकस्वामी इन्द्रदत्त में भांति भांति के कमलोंसे
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