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शोभित इसी तलाबके किनारे रहूंगा आप अपने मनोहरपुरमें ज़ाकर निवास करें। ___कुमारके मुखसे ऐसे उत्तम बचन सुनकर सेठि इन्द्रदत्तने फिर कहा कि हे राजकुमार यदि आप यहां रहना चाहते हैं तो मेरा एक निवेदन है, वह यही है कि जब तक मेरी आज्ञा न होबे आप.इसतालाबको छोड़कर कहीं न जाय ।
इन्द्रदत्तके उसप्रकारके बचनोंको सुनकर कुमार श्रेणिक तो तालाबके किनारे बैठि गये और सेठि इन्द्रदत्तने अपने नगर की ओर गमन किया । ज्योंही इंद्रदत्त अपने घरमें पहुंचे और जिससमय वे अपने कुटुम्बियोंसे मिले तो उनको अति आनंद हुवा, मारे आनंदके उनके दोनो नेत्र फूलगये, अंगरो मांचित होगया और मुख भी कांति मान होगया । तथा जिससमय स्त्री पुत्र पुत्रियोंने उनका सन्मान किया और प्रेम की दृष्टिसे देखा तो उन्होने पूर्वोपाजित धर्मके प्रभावसे अपना जन्म सार्थक जाना और अपनेको कृतकृत्य समझा। ____ महोदय सेठि इंद्रदत्त के पीन एवं उन्नत स्तानोंसे शोभित, चंद्रमुखी कोकिलाके समान मधुर बोलनेवाली--पिकनी नंदश्री नामकी कन्याथी । उसकन्याने अपने गनोहर कंठसे कोकिलाको जीत लिया था वह मुखसे चंद्रमाको नेत्रोंसे कमल पत्रको और हाथसे कमल पल्लवको जीतनेवाली थी । उसके केशोंके सामने मनोहर नीलमाणभी तुच्छ मालूम पड़ती थी गतिसे
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