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वह हंसिनीकी चाल नाची करनेवाली थी । एवं स्तनोंसे उसने सुवर्णकलशों को नितवोंसे उत्तमोशिलाको, रूपसे कामदेवकी स्त्री रतिको निस्कृत कर दिया था । जिससमय इस कन्याने अपने पिता इन्द्रदत्तको देखा तो शीघ्रही उसने प्रमाण पूर्वक कुशल क्षेम पूछी । तथा कुशल क्षेम पूछनेके वाद अपनी मनोहर वाणी से यह कहा कि हे पूज्यपिता आपके साथ कोई भी उत्तम बुद्धिमान मनुष्य आयाहुवा नहीं दीखता । परदेशसे आप किसी मनुष्यके साथ२ आये हैं अथवा अकेले ? पुत्री के ऐसे बचन सुनकर एवं उन बचनोंके तात्पर्य को भी भलीभांति समझकर सेठि इन्द्रदत्तने हर्षपूर्वक उत्तर दिया कि हे पुत्री मेरे साथ एकमनुष्य अवश्य आया है और वह अत्यंतरूपवान युवा गुणी मनोहर तेजस्वी और बुद्धिमान है। तथा वह मनुष्य अपनेको मगध देशके स्वामी महाराज उपश्रेणिकका पुत्र कुमार श्रेणिक वतलाता है यद्यपि वह तेरेलिये सर्वथा वरके योग्य है तथापि उसमें एक बड़ाभारी दोष है कि वह विचार रहित वचन बोलनेके कारण मूर्ख मालूम पड़ता है ।
ध्यान पूर्वक पिताके इसप्रकार के बचन सुनकर मनोहरांगी, दातोंकी दीप्तिसे सर्वत्र प्रकाश करनेवाली, कठिनस्तनी नताङ्गी कुमारी नंदश्रीने कहा कि हे पिता कृपाकर आप मुझसे कहैं जो मनुष्य आपके साथ आया है उसकी आपने क्या क्या चेष्टा देखी है ? उसकी उम्र क्या है ? और किसलिये वह यहां पर आया है ?
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