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दंड दियाजायगा इससमय उसके कहनेकी विशेष आवश्यकता नहीं । ऐसा कहकर कुमार श्रेणिक और सेठि इन्द्रदत्त जहां बौद्धसन्यासी रहते थे वहां गये और वहांपर उन्होंने रक्तवस्त्रोंको धारणकरनेवाले अनेक बौद्धसन्यासियोंको देखा । कुमार श्रेणिकके लक्षणोंको राजाके योग्य देखकर, यह राजकुमार है इस बातको जानकर और यह शीघ्रही राजा होगा यह भी समझ कर उनमेंसे एक सन्यासीने राजकुमार श्रेणिकसे पूछा।
हे मगध देशके स्वामी महाराज उपश्रेणिकके पुत्र, बुद्धिमान कुमार श्रेणिक तुम कहां जा रहे हो ? अकेले यहांपर आप कैसे आये ?।
कुमारने उत्तर दिया राजाने कोपकर हमे देशसे निकाल दिया है। फिर बौद्धसन्यासियोंके आचार्यने कहा हे कुमार अब आप पहले भोजनादि कीजिये फिर मेरे हितकर वचनोंको सुनिये । कुमार ! आप कुछ दिनबाद नियमसे मगध देशके राजा होवेंगे इसमें आप जरा भी संदेह न करें । मेरे बचनों पर आप विश्वास कीजिये और आप सुखकी प्राप्तिके लिये शीघ्रही बौद्ध धर्मको ग्रहण कीजिये । इसबौद्ध धर्मकी कृपासे ही आपको निस्संदेह राज्यकी प्राप्ति होगी। विश्वास कीजिये व्रतोंकें करनेसे तथा उपवासोंके आचरण करनेसे हमारे समस्त कार्योंकी सिद्धि होती हैं हमारा यह उपदेश है कि आप राज्यकी प्राप्ति के लिये निश्चल रीतिसे बौद्ध धर्मकोधारण करें ।
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