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को राजा बनने की इच्छा है तो आप बौद्ध धर्मको ही अपना मित्र बनायें क्योंकि इस धर्मसे बढ़कर दुनियां में दूसरा कोई भी मित्र नहीं है । बौद्धाचार्य के इनबचनोंने कुमार श्रेणिकके पवित्र
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हृदयपर पूरा प्रभाव जमादिया, कुमार श्रेणिकने बौद्धाचार्यके कथनानुसार बौद्धधर्म धारण किया एवं उसबौद्धाचार्यके चरणोंको भक्ति पूर्वक नमस्कार कर वौद्ध धर्मके पक्के अनुयायी वन गये । अतिशय निर्मल चित्तके धारक कुमार श्रेणिकने उसी बौद्धाश्रममें इन्द्रदत्त सेठिके साथ साथ स्नान अन्न पानादिसे मार्गकी थकावट दूरकी । तथा राज्यकी ओरसे जो उनका अपमान हुवा था और उस अपमानसे जो उनके चित्तपर आघात हुवा था उस आघातको भी वे भूलने लगे और उस बौद्धाचार्य के साथ कुछ दिन पर्यंत वहीं पर रहे ।
अनंतर इसके अब यहांपर अधिक रहना ठीक नहीं यह विचारकर, अतिशय हर्षित चित्त, बौद्धधर्मके सच्चे अनुयायी, कुमार श्रेणिक उसस्थान से चले । यह समाचार सेठि इन्द्रदत्त ने भी सुना सेठि इंद्रदत्त भी यह जानकर कि कुमार श्रेणिक अत्यंत पुण्यात्मा हैं कुमारके पीछे पीछे चल दिये। इसप्रकार वनमार्गों को देखते हुवे, अनेकप्रकारकी पर्वत गुफाओंको निहारते हुवे, मत्तमयूरोंके नृत्यको आनंदपूर्वक देखते हुवे वे दोनों महादय जब कुछ थकगये तब कुमार श्रेणिकने अति मधुर वाणी से सेठि इन्द्रदत्त से कहा ।
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