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और भोक्ता था विना विचारे महाराज उपश्रेणिकने उसै कैसे नगरसे निकाल दिया ? इसप्रकार कुमार श्रेणिकके नगरसे चले जाने पर अत्यंत उन्नत कोलाहलयुक्तभी नगर शांत होगया । कुमारके शोकसे समस्तपुरवासी दुःखसागरमें गोता लगाने लगे। वह कोनसा दुःख न था जो कुमारके वियोग में पुरवासियों को न सहना पड़ा हो ।
इधर पुरतो कुमारके शोक सागरमें मग्न रहा उधर कुमार श्रेणिक मार्गमें जाते २ कुछ दूर चलकर अत्यंत दुःखित, एवं अपमान जन्य दुःखके प्रवाहसे जिनका मुखफीका हो गया है, माको स्मरण करने लगे । तथा और भी आगे कुछ धीरे धीरे चलकर बुद्धिमान कुमार श्रेणिक, मयूरशब्दोंसे शोभित किसी निर्जन अटवी में जा पहुंचे। वहांसे अनेकप्रकारके धान्योंसे शोभित, चित्र विचित्र ध्वजाओंसे मंडित, एवं राजमंदिर से भी शोभित कोई मनोहर नंदिग्राम उन्हें दीख पड़ा । महाधीर वीर कुमार धीरे धीरे उसी नगरकी ओर रवाने होकर उसनगर के द्वार पर आ पहुँचे । द्वारकी अपूर्व शोभा निरखते हुवे वहां पर ठहर गये पीछे उसनगर में प्रवेशकर कुमार श्रेणिक अनेकप्रकार के माला घंटा तोरण आदिकर शोभित, अत्यंतमनोहर, श्रेष्टसंपत्ति के धारक राजमंदिरके पास पहुंचे और वहां उन्होंने अत्यंतवृद्ध नानाप्रकार के गुणोंकरमंडित, मनोहर, अतिशय प्रीतिकरनेवाले, उत्कृष्ट, किसी इन्द्रदत्तनामके सेठिको देखा और उससे कहा ।
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