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( ४४ ) महाराजकी इस विचित्र वातको सुनकर अन्य मंत्रियाने तो कुछ भी उत्तर न दिया पर अत्यंत बुद्धिमान सुमतिनामक मंत्रीने कहा । हे प्रभो ! हे राजन् ! हे समस्त प्रथ्वीकेस्वामी ! हे समस्त वैरियोंकेमन्तकोंको नीचे करनेवाले ! महाभाग! आप सरीखे नरेद्रोंको किस वातकी चिंता होसकती है । हे प्रभो देवोंके घोड़ोंको भी अपने कला कौशलसे जीतनेवाले अनेक घोड़े आपके यहां मोजूद हैं, जो कि अपने खुरोंके बलसे तमाम पृथ्वीका चूणकरसकते हैं, और आपकी भक्तिमें सदा तत्पर रहते हैं । अपने दांतरूपी खगोसे तमाम पृथ्वीको विदारण करनेवाले अंजन पर्वतके समान लम्बे चोड़े आपके यहां अनेक हाथी मोजूद हैं । हे राजेन्द्र आपके मंदिरमें भली मांति आपकी आज्ञाके पालनकरने वाले अनेक पदाति · सेना) भी मोजूद हैं । और रथी शूरवीर भी आपके यहां वहुत हैं, जो कि संग्राममें भली भांति आपकी आज्ञाके पालन करनेवाले हैं । आपको किसी वैरीकी भी चिंता नहीं है क्योंकि आपके देशमें आपका कोई वैरीभी नजर नहीं आता, आपके धन तथा राज्यका कोई वांटने वाला ( दायाद भी नहीं है और आपके पुत्रभी आपकी आज्ञाके पालन करनेवाले हैं।
आपके राज्यमें कोई आपको विरोधी कुटिल भी दृष्टिगो| चेर नहीं होता फिर हे प्रभो आपके मनमें किस बात की चिंता है ? आप उसे शीघ्र प्रकाशित करें उसके दूरकरनेके
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