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रक्खा था वहां जोजल घड़ेसे बाहिर एकठा हुवा था उसीस अपनी प्यास बुझाई किंतु घड़ेके मुखको खोलकर पानी नहीं पीया। अनंतर महाराज उपश्रेणिकने समन्तराजकुमारोंको अपने २ घर जानके लिये आज्ञादी। परीक्षासे राज्यकी प्राप्तिके सब चिन्ह धीर वीर भाग्यशाली कुमार श्रेणिकमें देखकर महाराज श्रेणिक अपने मनमें इसप्रकार चिंता करनेलगे, कि ज्योतिषी के वतलाये निमित्तोंसे कुमार श्रेणिक सर्वथा राज्यके योग्य सिद्ध होचुका अब मैं किस रीतिसे चलाती पुत्र को राज्यदूं ? मैं पहिले यह बचन देचुका हूं कि यदि राज्य दूंगा तो चिलातीको ही दूंगा, किंतु ज्योतिषीद्वारा बतलाये हुवे निमित्तोंसे राज्यकुमार श्रेणिक ही उपयुक्त ठहता है । अबमे पहिले दिये हुवे अपने वचनकी कैसे रक्षा करूं ? हां यह वात विलकुल ठीक है कि जिसका भाग्य बलवान होता है उसको राज्य मिलता है इसमें जराभी संदेह नहीं । इसप्रकार अत्यंत भयंकर चिंता सागर गोतालगाते हुवे महाराज उपश्रेणिकने अत्यंत वुद्धिवान सुमति तथा अतिसागर नामके मंत्रियोंको तथा इनसे अतिरिक्त अन्य मंत्रियों को भी बुलाया और उनसे इस प्रकार अपने मनका भाव कहाः -
हे मंत्रियो आप सब लोग अत्यंत बुद्धिमान तथा श्रेष्ठ हैं । मेरे मनमें एक बड़ी भारी चिंता है जिससे मेरा सवशरीर सूखाजाता है उसचिंताकी निवृत्ति किस रीतिसे होगी इसपर विचारकरो।
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