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स्वाद के आनंद में मन हुये, तब महाराज उपश्रेणिककी आज्ञा से राज सेवकोंने भयंकर कुत्तोको छोडदिया फिर क्या था ? वे भयंकर कुत्ते सुगंधित उतम भोजनको देखकर उसी ओर झुके और भोंकते हुवे समस्त कुत्ते राजकुमारोंके भोजनपात्रोंपर बाकी बात में टूटपड़े । भोजनपात्रोंके ऊपर उनकुत्तोंको टूटते हुवे देखकर मारे भयके कांपते हुए राजकुमार अपने अपने भोजनके पात्रोंको छोड़कर एक दम वहांसे भगे और आपस में हंसी करते हुवे तितरवितर होकर अपने २ घरोंको चले गये । बुद्धिमान कुमार श्रेणिकने जब यह दृश्य देखा कि ये कुत्ते आगे बढ़े चले ही आरहे हैं और काटनेके लिये उद्यत है तब उसने अपनी बुद्धि से उन सब कुत्तोंको दूर हटाया और दूसरे २ कुमारोंकी पत्तरोंको उन कुत्तोंके सामने फेककर उन्है बहुत दूर भगादिया और आनंदसे भोजन करने लग गया ।
इसबात को सुनकर महाराज उपश्रेणिक फिर भी अत्यंत चिंतासागर में निमग्न होगये और बिचारने लगे कि मैं अब इस उत्तम राज्यको चलातीकुमारको किस रीति से प्रदान करूं ? एक समय जब नगर में भयंकर आगलगी आगलगी तथा ज्वालासे समस्त नगर जलने लगा और नगरके लोग जहां तहां भागने लगे तब कुमार श्रेणिक तो झट सिंहासन छत्र आदि सामानको लेकर वनको चलागया । शेष राजकुमार कोई हाथ में भाला लेकर बनको गया और कोई खङ्गलेकर कोई घोड़ा
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