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( ३२ ) तिलकवती के साथ साथ अनेकप्रकारके तोरणोंसे शोभित, नीली पीली आदि ध्वजाओंसे सुशोभित, चित्तको हरणकरनेवाले, नानाप्रकारके चौकोंसे मंडित, राजग्रहनगरमें प्रवेशकिया ।
राजगृहनगरके राजमार्गमें जातेहुवे महाराज उपश्रेणिकको देखकर अनेक नगरनिवासी अपने मनमें इसप्रकार कल्पना करते कहते थे कि अहा पुण्यका महात्म्य विचित्र है देखो कहां तो अत्यंत धारवीर महाराज उपश्रेणिक ? और कहां उत्तमांगी, चन्द्रमुखी, मृगाक्षी, लक्ष्मीके समान अतिमनोहर, स्थूल उन्नत स्तनोंसे मंडित, कन्या तिलकवती? कहां महाराज उपश्रेणिकका विशालवनमें गड्ढेमें गिरना और निकलना ? और कहां पीछे इसकन्याके साथ साथ विवाह ? जानपड़ता है इसीकन्याकी प्राप्तिके लिये महाराज उपश्रेणिकको समस्तपुण्य मिलकर वहां लेगये थे। इसमें संदेह नहीं जो मनुष्य पुण्यवान हैं उनकेलिये विपत्ति भी संपत्ति स्वरूप और दुःख भी सुखस्वरूप होजाता है। बुद्धिमान मनुष्योंको चाहिये कि वे सदा पुण्यका ही संचयकरें । ___इसप्रकार नगरवासियोंके कथा कौतूहलोको सुनते महाराज उपभोणकने रानी तिलकवतीके . साथ साथ अनेक प्रकारकी शोभाओंसे सुशोभित राजमंदिर में प्रवेशकिया। राजमंदिरमें प्रवेशकरने पर महाराज उपश्रेणिकने तिलकवाके उत्तमोत्तम गुणोंसे मुग्धहो उसे अतिशय मनोहर क्रीड़ा योग्य मकानमें ठहराया और नवोढ़ा तिलकवत के साथ अनेक
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