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( ३८ ) स्वयं ऐसा विचार करने लगे कि आश्चर्यकी बात है कि राज्यतो मैंने चलातकीको देनेकेलिये दृढ़ संकल्प करलिया है लेकिन अब नहीं जानसकता कि इननिमित्तोंसे परीक्षा करने पर राज्यका कौन भोगनेवाला ठहरैगा ?
कुछ समय बीतजानेपर महाराजने एकसमय अपने समस्तपुत्रोंको सभामें. कुलाया. और सरलस्वभावसे वे लोग महाराजकी आज्ञाके अनुसार सभामें आकर अपने २ स्थानोंपर वैटगये। उनको भलीभांति वैठेहुवे देखकर महाराजने कहा हे पुत्रों मैं जो कहता हूं सुनोः-- आप लोग एक २ शक्करका घडा लेकर सिंह द्वारकी ओर जाइये ।
महाराजके इसवचनको सुनकर महाराजकी आज्ञाके पालन करनेवाले सब कुमार महाराजकी आज्ञासे एक एक शक्करके घड़ेको स्वयं लेकर सिंहद्वारकी ओर गये तथा थोड़ी देर वहांपर टहरकर अपने अपने घरोंको चले आये। पर चतुर कमार श्रेणिक किसी अन्यसेक्कके सिरपर घड़ेको रखवाकर सिंहद्वार में गया तथा पीछे खेलता हुवा अपने घरको चला आया । जब महाराज उपश्रेणिकने यहवात सुनी तब वे चकित होकर रहगये और अपने मनमें विचार करने लगे निःसन्देह भाग्यशाली श्रेणिककुमारही राज्यका अधिकारी होगा | अब मैं अपने राज्यको चलाती कुमारकेलिये कैसे देसकूँगा ?
इस प्रकार कुछ समय तक विचार करते २ महाराजने
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