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यह मेरी प्यारी पुत्री प्रथमतो आपके किसी काम की नहीं । यदि देवयोगसे इसका संबंध आपसे हो भी जाय ? तो हे प्रभो क्या यह अन्य रानियों द्वारा घृणाकी दृष्टिसे देखी जानेपर उस अपमान से उत्पन्न हुई पीड़ाको सहन करसकेगी ? और हे प्रजापालक प्रथमतो मुझे विश्वास नहीं कि इसके कोई पुत्र होगा ? कदाचित् दैवयोगसे इसके कोई पुत्र भी उत्पन्न होजाय और श्रेणिक आदि कुमारोंका वह सदा दास बना रहै, तो भी उसको अवश्य दुःख ही होगा, और पुत्रके दुःखसे दुःखित यह मेरी प्राणस्वरूप पुत्री अन्य रानियों द्वारा अवश्यही अपमानित रहेगी ? इसलिये उपरोक्त दुःखोंके भयसे मैं अपनी इस प्यारी पुत्रीका आपके साथ विवाह करना उचित नहीं समझता । हां यदि आप मुझे इसप्रकारका वचन देवें कि जो इससे पुत्र उत्पन्न होगा वही राज्यका उत्तराधिकारी वनैगा तो मैं हर्ष पूर्वक आपकी सेवामें अपनी पुत्रीको समर्पण कर सकता हूं । जो उचित आप न्याय एवं अन्याय समझे सो करें आप मेरे स्वामी है और मैं आपका सेवक हूं ।
राजा यमदंडके इसप्रकारके वचन सुनकर महाराज उप श्रेणिकने उसकी समस्त प्रतिज्ञाओंको स्वीकार किया और प्रसन्नता पूर्वक उसकी तिलकवती पुत्री के साथ विवाहकर, उसके साथ भांति भांतिकी क्रीड़ा करते हुवे महाराज उपश्रेणिक बिशाल संपत्ति के साथ राजग्रहनगर को रवाना हुए और
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