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( ३४ ) नवीन, स्त्रियोंमें उत्तम, अत्यंत उज्ज्वल, हर एक कलामें प्रवणि, समस्त पुण्योफलोंसे उत्पन्ना, उत्तमरूपवाली, और समस्त देवांगनाओंके समान अत्यंत उत्कृष्ट, भाग्यक्ती तिलकवतीको महाराज उपोणिक नानाप्रकारकी क्रीड़ाओं से तुष्ट करते । थे तथा मोहसे नानाप्रकारकी काम को पैदा करनेवाली चेष्टाओंको करनेवाली, अत्यंत मनोहर, अपने शरीरको दिखानेवाली, अत्यंत प्रौढा, देदीप्पमान वस्त्रोसे शोभित, मुकट जडित मणियोंकी किरणोसे अधिक शोभायमान, अत्यंत निर्मलरूपवाली और पुण्यकी मूर्ति, तिलकवती भी अपने हाव भावोंसे, नानाप्रकारके भोग विलासोंसे महाराज उपश्रेणिकके साथ क्रीड़ा कर उन्हें तृप्त करती थी। सच है:-धर्मात्मा प्राणियोंको धर्मकी कृपासे ही उत्तम कलमें जन्म मिलता हैं, धर्मकी कृपासे ही उत्तमोत्तम राजमंदिर मिलते हैं, धर्मके महात्म्यसें ही मनोहर रूपवाली भाग्यवती सती सर्वोत्तम स्त्रीरत्न की प्राप्ति होती है, धर्मसे ही समस्त प्रकारकी आकुलतारहित विभूति प्राप्त होती है, एवं अत्यंत आनन्दको देने वाले धर्मसे ही मोक्ष सुख भी मिलता है। इसलिये उत्तम मनुष्योंको उचित है कि वे उत्तमोत्तम राज्य, स्वर्ग, मोक्ष इत्यादि सुखों के प्राप्तकरानेवाले धर्मके फलों को भलीभांति जानकर धर्ममें । अपनी बुद्धिको स्थिरकर धर्मको धारण करें।
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