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( ३३ ) मकारकी क्रीड़ा करने लगे। कभी कभी तो महाराज कमलके रस लोलुप भँवरेके समान रानी तिलकवतीके मुखकमलके रसका आस्वादन करते, और कभी कभी चंदन लता पर गंधलोलुप भ्रमर के तुल्य उस के साथ उत्तानक्रीडा करते । जानपड़ाता था कि स्तनरूषी दो मनोहर क्रीड़ा पर्वतोंसे युक्त महाराणी तिलकवतीका वक्षः स्थल वन है और महाराज उपश्रेणिक उस बनमें विहार करनेवाले मनोहर हिरण हैं । जब उपश्रेणिक अपने हाथोंसे महाराणी तिलकव के स्तनोंपरसे अति मनोहर वस्त्रको खींचते थे तब जान । पडता था कि उसके स्तनरूपी खजानेके कलशोंपर उनकी रक्षार्थ दो सर्पही बैठे थे । महाराणी तिलकवीके, मैथुनरूपी जलसे युक्त कामदेवरूपी मनोहर कमलके आधारभूत, दोनों जंघारूपी सरोवरके बीच महाराज उपश्रेणिक ऐसे मालूम पड़ते थे मानों। सरोवरमें हंस ही क्रीडा कर रहा है । रानी तिलकवती के साथ । अनेक प्रकारको क्रीड़ा कर महाराज उपश्रेणिकने उसे केवल क्रीड़ाके ताड़नोंसे व्याकुल ही नहीं किया था किंतु र्निदयताके साथ वे उसे
चुंबनोंसे भी व्याकुल करते थे। ___इसप्रकार प्रेमपूर्वक चिरकाल क्रीड़ा करनेसे रानी तिलकवतीके चलाती ( चलातकी ) नामका उत्तम पुत्र उत्पन्न हुचा और अत्यंत भाग्यशाली वह चलातकी थोड़ेहो कालमें बडा होगया। इसरीतिसे पुण्यके माहात्म्यसे अत्यंत मनोहर,
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