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कराती और कभी कभी अतिशय मधुर शीतल जलसे महाराजके मनको संतुष्ट करती । इसप्रकार कुछ दिनोंके वाद औषधिसंयुक्त भोजनोंसे विशेषतया उसकन्याके हाथसे भोजन करनेसे महाराज उपश्रेणिकका स्वास्थ्य ठीक होगया तथा महाराज उपश्रेणिक पूर्वकी तरह ज्योंके त्यों नीरोग होगये । ___जब तक महाराज सरोग रहै तव तक तो मैं किसप्रकार नीरोग हूंगा' ? मेरा यह रोग किसरीतिसे नष्ट होगा ? इत्यादि चिन्ता सिवाय महाराजके चित्तमें किसी विचारने स्थान नही पाया, किंतु नीरोग होते ही नारोगताके साथ २ उसकन्याके स्नेह, सेवा, रूप एवं सौंदर्यपर अतिशय मुग्ध होकर वे विचारकरने लगे कि इसकन्याका रूप आश्चर्य कारक है । और इसके मनोहर वचन भी आश्चर्य करनेवाले ही हैं । तथा इसकी यह मंद मंद गतिभी आश्चर्य ही करने वाली है । इसकी बुद्धि अतिशय शुभ है । इसके दानों नेत्र चकित हारणीके समान चंचल एवं विशाल हैं । अर्ध चन्द्रके समान मनोहर इसका ललाट है । और इसका मुख चंद्रमाकी कांतिके समान कांतिका धारण करने वाला है। यह कोकिलाके समान अतिशय मनोहर शब्दोंको बोलने वाली है, रूप एवं सौभाग्यकी खानि है, आतिशय मनोहर इसकन्याके ये दोनो स्तन, खजानेके दो सुवर्णमय कलशोंके समान उन्नत, कामदेवरूपी सर्पसे कलंकित, आतशय स्थूल हैं, और हरएक
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