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अलग फैंकदिया। चतुरंगिनीसेनाने और महाराज उपश्रेणिकके पुत्रोंने महाराजके ढूड़ने के लिये अनेक प्रयत्न किये किंतु कहीं परभी उनका पता न लगा। किंतु'णमोअरिहंताणंणमोसिद्धाणं' इत्यादि महामंत्रको ध्यान करते हुवे महाराज उपश्रेणिक अंधकार मय एवं दुःखोंके देनेवाले उसी गड्ढ़े में पड़े हुए अनेक प्रकारके कष्टोंको भोगते रहे ।
जिसवनके भीतर भयंकर गड्ढे में महाराज उपश्रेणिक पड़े थे उसी वनमें एक अत्यंत मनोहर भालोंकी पल्ली थी। उस पल्ली का स्वामी, समम्तभीलोंका अधिपति क्षत्रिय यमदंड नामका राजा था। उसकी विद्युन्मती पटरानी अतिशय मनोहर और रूप एवं सौभाग्यकी खानि थी । इनदोनों राजारानीके चंद्रमाके समान उत्तम मुखवाली तिलकवती नामकी एक कन्या थी। ___क्रीड़ा करनेका अत्यंत प्रेमी राजा यमदंड, इधर उधर अनकेप्रकारकी क्रीड़ाओंको करता हुवा उसी गड्ढेके पास आया जिसगड्ढे में महाराज उपश्रेणिक पडे नानाप्रकार के कष्टोंको भोग रहे थे । गड्ढेके अत्यत समीप आकर जब महाराज उपश्रेणिकको उसने भयंकर गड्ढे में पड़ा देखा तो वह आश्चर्यसे अपने मनमें यह विचार करनेलगा कि यह कोंन है ? यह कैसे इसदशाको प्राप्त हुवा ? और इसे किसने इसप्रकारका भयंकर कष्ट दिया है ? कुछ
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