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जीव अधिकार
मोक्षमार्गतत्फलस्वरूपनिरूपणोपन्यासोऽयम् । 'सम्यग्दर्शनहानचारित्राणि मोक्षमार्गः, इति वचनात्, भार्गस्तावच्छुद्धरत्नत्रयं, मार्गफलमपुनर्भधपुरन्ध्रिकास्थूलभालस्थललीलालंकारतिलकता । द्विविधं फिलवं परमवीतरागसर्वज्ञशासने चतुर्थज्ञानधारिभिः परिमिः समाख्यातम् । परमनिरपेक्षतया निजपरमात्मतत्त्व सम्यकबद्धानपरिज्ञानानुठानशुद्धरत्नत्रयात्मकमार्गो मोक्षोपायः । तस्य शुद्धरत्नत्रयस्य फलं स्वात्मोपलब्धिरिति ।
(पृथ्वी ) क्वचिद्यजति कामिनीरतिसमुत्यसोल्यं जनः क्वचिदविणरक्षणे मतिमिमां च चक्रे पुनः ।
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कथन किया गया है [ मोक्षोपायः मार्गः ] मोक्ष का उपाय मार्ग है और [ तस्य फलं निर्वाणं भवति ] उस मार्ग का फल निर्वाण है।
टीका-मोक्षमार्ग और उसके फल के स्वरूप निरूपण का यह कथन है ।
__ 'सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यकचारित्र इन तीनों की एकता ही मोक्ष का मार्ग है ऐमा 'मूत्रकार का वचन है । यहां शुद्धरत्नत्रय को मार्ग कहा है पीर पुनर्भव से रहित ऐसी मुक्ति रूपी स्त्री के विशाल ललाट प्रदेश में लोला रो रचिन झालंकार स्वरूप तिलकपना हो मोक्षमार्ग का फल है। अर्थात् मुक्ति स्त्री के ललाट के तिलक स्वरूप होना-उसका पति होना-मुक्ति को प्राप्त करना ही मार्ग का फल है । परम वीतराग सर्वज्ञदेव के शासन में चतुर्थ-मनःपर्ययज्ञानधारी पूर्वाचार्यों ने इस प्रकार से दो प्रकार का ही कथन किया है । परम निरपेक्ष रूप से निज परमात्म तत्त्व का सम्यक् श्रद्धान उसी परमात्मतत्त्व का सम्यक् परिज्ञान और उसी परमात्मतत्त्व में सम्यक अनुष्ठानरूप शुद्ध रत्नत्रयात्मक मार्ग मोक्ष का उपाय है और उस शुन्दरत्नत्रय का फल अपने आत्मस्वरूप की उपलब्धि है।
[ अब टीकाकार श्री मुनिराज संसारी जीवों की भिन्न-भिन्न रुचि को बतलाते हुये श्लोक द्वारा यह स्पष्ट कर रहे हैं कि जो जिनेन्द्र के मार्ग को प्राप्त करके अपनी आत्मा में रत हो जाता है वही मोक्ष को प्राप्त करता है । ]
१. यो उमारवामी प्राचार्य 1