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उक्त सब उल्लेखों को दृष्टि में रखते हुए यही निष्कर्ष निकलता है कि भगवान् ऋषभदेव की दोनों पुत्रियां वालब्रह्मचारिणी थीं। उनका केवल वाग्दान ही किया गया था, न कि विवाह ।
जहां तक ब्राह्मी और सुन्दरी के एक साथ ग्रथवा पूर्वापर क्रम से प्रव्रजित होने का प्रश्न है वहां कल्पसूत्र, आवश्यक मलय वृत्ति एवं त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के उपरिचित परस्पर भिन्न उल्लेखों को देखते हुए ऐसा अनुमान किया जाता है कि संघ में उनके दीक्षाकाल को ले कर पूर्व समय में दो प्रकार की परम्पराएं प्रचलित थीं। एक परम्परा दोनों बहिनों का साथ-साथ दीक्षित होना मानती थी। दूसरी परम्परा ब्राह्मी की दीक्षा के अनन्तर बड़े लम्बे व्यवधान के पश्चात् सुन्दरी द्वारा दीक्षा ग्रहण किया जाना मानती थी ।
नीमरी शंका उपस्थित की गई है - चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार के स्वर्गगमन के सम्बन्ध में । प्रस्तुत ग्रन्थ-माला के भाग १, पृष्ठ १६३ पर चक्रवर्ती सनत्कुमार के लिये उल्लेख किया गया है कि वह तीसरे सनत्कुमार देवलोक में उत्पन्न हुआ । मैद्धान्तिक परम्परा में मनत्कुमार चक्री का मोक्षगमन माना गया है। वस्तुतः प्रथम भाग में इस प्रकार का उल्लेख टीकाकार ग्रभयदेव सूरि कृत स्थानांग की टीका' और प्राचार्य हेमचन्द्र कृत त्रिपष्टि शलाका पुरुष चरित्र के आधार पर किया गया है ।
स्थानांग सूत्र में चार प्रकार की अंत क्रियाओं का जो सोद्राहरण विवरण दिया गया है, उसका सारांश इस प्रकार है :
प्रथम - अल्पकर्म-प्रत्यया अंत-क्रिया, जिसमें भरत की तरह ग्रल्प तप, अल्प वेदना और दीर्घ पर्याय से सिद्ध होना ।
दूसरी - महाकमं प्रत्यया ग्रन्त किया, जिसमें गज मुकुमाल की तरह तथा प्रकार के तप और वेदना के साथ निरुद्ध पर्याय से अल्प काल में ही सिद्धि प्राप्त
करना ।
तीसरी वही महाकर्मप्रत्यया ग्रन्त क्रिया, जिसमें सनत्कुमार चक्रवर्ती की तरह दीर्घकालीन तप, रोग के कारण दीर्घकालीन दारण वेदना के साथ दीर्घ पर्याय से सिद्ध होना ।
चौथी - अल्पकर्मप्रत्यया अन्तक्रिया, जिसमें भगवान् ऋषभदेव की माता मरुदेवी के समान तथाविध तप वेदना और संयम ग्रहण करते ही निरुद्ध पर्याय से सिद्धि प्राप्त कर लेना ।
" यथामी सनत्कुमार इति चतुर्थचक्रवर्ती स हि महातपा महावेदनश्च सरोगत्वात् दीर्घपर्यायेण च सिद्धस्तद्भवे सिद्धयभावेन भवान्तरे सेत्स्यमानत्वादिति ।
[ स्थानांग, ठाणा ४, टीका-प्रभयदेव सुरि ( राय धनपत सिंह प्रकाशन ) भाग १, पत्र १६९ ]
स्थानांग, ठाणा ४
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