________________
. गया है न कि सुंदरी को।' कल्प सूत्र के इस उल्लेख से यही सिद्ध होता है कि उन दोनों बहिनों ने तीर्थ-प्रवर्तन के समय साथ साथ दीक्षा ली।
२. अावश्यक मलय और श्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र आदि में दूसरी यह मान्यता उपलब्ध होती है कि भगवान ऋषभदेव ने जिस समय धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन किया, उस समय ब्राह्मी प्रवजित हो गई । सुन्दरी भी उसी समय प्रवजित होना चाहती थी परन्तु भरत ने उसे यह कह कर प्रवजित होने से रोक दिया कि चक्रवर्ती बन जाने पर उसे (सुन्दरी को) अपनी पत्नी (स्त्रीरत्न) के पद पर स्थापित करेगा। भरत श्रावक बना और सुन्दरी श्राविका ।२ पश्चाद्वर्ती प्रायः सभी ग्रन्थकारों ने इसी मान्यता को प्राश्रय दिया है।
३. तीसरी मान्यता यह प्रचलित है कि भगवान ऋपभदेव ने श्रमण-धर्म में दीक्षित होने से पूर्व भरत की महोदरा ब्राह्मी का सम्बन्ध वाहुबली के साथ और बाहुबली की सहोदरा सुन्दरी का विवाह भरत के साथ कर दिया था। कैवल्योपलब्धि के पश्चात जब प्रभ ने धर्मतीर्थ की स्थापना की तो उस समय वाहवली की ग्राज्ञा के ब्राह्मी श्रमणीधर्म में प्रवजित हो गई। सुन्दरी भी अपनी बड़ी वहिन के साथ ही प्रवजित होना चाहती थी पर भरत ने यह कहते हुए उसे दीक्षीत होने से रोक दिया कि वह उसे चक्रवर्ती बनने पर अपना स्त्रीरत्न वनायेगा।
वस्तुतः यह तीसरे प्रकार की मान्यता 'दत्ता' शब्द का सम्यग् अर्थ न समझने के कारण उत्पन्न हुई भ्रान्त धारणा के फलस्वरूप प्रचलित हुई है। इसके पीछे कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। एतद्विषयक समस्त जैन वाङ्मय के पर्यालोचन से प्रकट होता है कि किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में ब्राह्मी तथा सुन्दरी के विवाह का उल्लेख नहीं है। यहां विवाह और वाग्दान का अंतर समझना चाहिये। .
विवाह एवं वाग्दान (सगाई) इन दोनों परम्पराओं के प्रचलित होने का प्रारम्भिक इतिहास प्रस्तुत करते हुए आवश्यक नियुक्ति में निन्नलिखित रूप से उल्लेख किया गया है :
दलृ कयं विवाहं, जिरणस्स लोगो वि काउमारद्धो।
गुरुदत्तिया य कन्ना, परिणिज्जंते ततो पायं ।।२२३॥' १ उसभस्स रणं प्ररहनो कोसलियस्स सुभद्दापामोक्खाणं समणोवासियाणं, पंचसयसाहस्सीप्रो चडपन्नं च सहस्सा उक्कोसिया समगोवासियासंपया होत्था ।
[कल्पसूत्र, सूत्र १६७ (पुण्य विजयजी)] ......तत्थ उसभसेरणो नाम भरहपुतो पुन्वभवबद्धगणहर-नामगुत्तो जायसंवेगो पव्वईप्रो, बंभी य पव्वइया । भरहो सावनो जाग्रो सुंदरी पव्वयंती भरहेण ईत्थीरयणं भविस्सइ त्ति रुद्धा, सा वि साविया जाया।
[अावश्यक, मलय] ३ अावश्यक नियुक्ति ।
( २० )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org