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सम्प्रदायों में इस प्रकार की मान्यता प्रचलित है। शोधक इस सम्बन्ध में कोई प्राचीन उल्लेख प्रस्तुत कर सकें तो उत्तम होगा।
दूसरी शंका ब्राह्मी और सुंदरी के विवाह एवं दीक्षा के सम्बन्ध में उठाई गई है । परम्परागत मान्यतानुसार इन दोनों बहिनों को बालब्रह्मचारिंगी माना गया है। दिगम्बर परम्परा के मान्य ग्रन्थों में इन दोनों को स्पष्ट रूपेगा अविवाहित बताया गया है । हरिवंश पुराणकार ने लिखा है कि वे दोनों कुमारिकाएं अर्थात् अविवाहिता थीं:--
ब्राह्मी च सुन्दरी चोभे, कुमायौं धैर्यसंगते । प्रव्रज्य बहुनारीभिरार्याणां प्रभतां गते ।।२१७।।'
इसी प्रकार प्रादि पुराणकार ने भी ब्राह्मी के लिये राजकन्या का विशेषण प्रयुक्त कर इन दोनों वहिनों के अविवाहित होने का निम्नलिखित म्प में उल्लेख किया है :
भरतस्यादुजा ब्राह्मी, दीक्षित्वा गुर्वनुग्रहात् । गणिनीपदमार्याणां, सा भेजे पूजितामरैः ।।१७५।। ग्गज गजकन्या मा, राजहंसीव मुस्वना । दीक्षाशरन्नदीशीलपुलिनस्थलशायिनी ॥१७६।। .............
................। सुन्दरी चात्त-निर्वेदा, तां ब्राह्मीमन्वदीक्षत ।।१७७।।२
ब्राह्मी और सुन्दरी को हरिवंश पुराणकार ने तो 'कुमायौं' विशेषण के द्वारा स्पष्टरूपेण अविवाहितावस्था में दीक्षित होना बताया है । ग्रादि पुराणकार ने भी ब्राह्मी को राजकन्या बताया है। इससे यही सिद्ध होता है कि दोनों वहिने वालब्रह्मचारिणी थीं।
इस प्रकार दिगम्बर परम्परा में तो ब्रह्मी और मुंदरी इन दोनों बहिनों के अविवाहित होने एवं साथ साथ प्रवजित होने की मान्यता प्रचलित है। परन्तु श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में निम्नलिखित तीन प्रकार की विभिन्न मान्यताएं उपलब्ध होती हैं :
१. भगवान ऋषभदेव के धर्म-परिवार का विवरण प्रस्तुत करते हा कल्प सूत्र में ब्राह्मी और सुंदरी का तीन लाख श्रमगिगयों की प्रमुख माध्वियां होने का उल्लेख किया है। साथ ही श्राविका समूह की प्रमुखा सुभद्रा को बताया ' हरिवंश पुराण, सर्ग ६ पृ. १८३, २ प्रादि पुराण, भा. १, पर्व २४. 3 उसभस्स णं अरहनो कोसलियस्स बंभी सुरिपामोक्वागि अज्जियाणं तिणि मयसाहगीग्रो उक्कोसिया अज्जिया संपया होत्था। [कल्पसूत्र, मत्र १६७ (पृष्य विजय जी)
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