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प्राचार्य मलयगिरि ने इस गाथा की व्याख्या करते हुए प्रावश्यक मानि में लिखा है :
"जिनस्य भगवत ऋपभम्वामिनो कृतं विवाहं दृष्ट्वा लोकोऽपि ग्याप याना विवाहं कर्तुमारब्धवान् । गतं विवाहद्वारं । दत्ति द्वारमाह - भगवता युगलधर्म - व्यवच्छेदाय भरतेन सह जाता ब्राह्मी बावलिने दना, बावलिना मह जाता सुन्दरी भरतायेति दृष्ट्वा तत प्रारभ्य प्रायो लोकोऽपि कन्या पित्रादिना दता सती परिणीयते इति प्रवृत्तं ।''
अर्थात् - ऋषभदेव का विवाह किया गया, यह देख कर लोगों ने अपनी अपनी संतति का विवाह करना प्रारम्भ किया। विवाह का प्रसंग समाप्त हुया । अव दत्ति अर्थात वाग्दान (सगाई) के प्रसंग अथवा प्रक्रिया पर कहते हैं- भगवान् ने युगलधर्म को समाप्त करने के अभिप्राय से भरत के साथ उत्पन्न हुई अपनी पुत्री ब्राह्मी की सगाई वाहुबली के साथ तथा बाहुबली के साथ उत्पन्न हुई सुन्दरी की सगाई भरत के साथ की।
नियुक्तिकार एवं वृत्तिकार ने विवाह और वाग्दान इन दो भिन्न प्रथाओं के प्रारम्भ होने का जिस प्रकार पृथक रूप से उल्लेख किया है, उससे निर्विवाद रूपेण यही सिद्ध होता है कि प्रभु ने अपनी पुत्रियों - ब्राह्मी और सुन्दरी-का केवल वाग्दान ही किया था विवाह नहीं। यदि विवाह किया होता तो वृत्तिकार "बाह्मी बाहुबलिने दत्ता" के स्थान पर “ब्राह्मी बाहुवलिने दत्ता परिगीता च" इस प्रकार का प्रयोग करते। वस्तुतः इन दोनों बहिनों का वाग्दान ही किया गया था न कि विवाह इसीलिये केवल 'दत्ता' शब्द का प्रयोग किया गया है।
___ संघदासगरिण-कृत वसुदेव हिण्डी नामक ई. सन् ६०४ के आसपाम की रचना में भी 'दत्ता' शब्द का प्रयोग वाग्दान के अर्थ में किया गया है। यथा
एयम्मि य देस याले रुप्पिणी सिसुपालस्स दमघोससुयस्स दत्ता ।
अर्थात उस समय रुक्मिणी राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल को दी गई। यहां 'दत्ता' शब्द वाग्दान के पर्ष में ही प्रयुक्त हुमा है। यह एक निर्विवाद एवं सर्वसम्मत तथ्य है कि रुक्मिणी का विवाह श्री कृष्ण के साथ हुआ। वसुदेव हिन्डी में इन दोनों बहिनों के विवाह का तो दूर वाग्दान तक का उल्लेख नहीं किया गया है। उसमें ब्राह्मी के प्रजित होने तथा श्रमगी समूह की प्रमुखा बनाये जाने का तो उल्लेख है किन्तु सुन्दरी की दीक्षा आदि के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं दी गई है। 'भावश्यक मलयवृत्ति, पत्र २०० (१) १ बसुदेव हिंडी, प्रथमोऽशः, पृ.८० वही, पृ. १६२, १६३, १८३, १८७ १८८
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