Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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Jain
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८० : मुनि श्री हजारीमल जी स्मृति ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
स्वप्निल थे जीवन के वे क्षण ? मुझे आज भी याद है कि हल्दीघाटी का इतिहास प्रसिद्ध दुर्गम घाटियों को पार करते हुए, एक ऐसा प्रसंग आया था, जिन दुर्गम घाटियों ने कभी राणाप्रताप और बादशाह अकबर के वीर सैनिकों का तुमुल नाद सुना था. आज वे ही घाटियाँ दो सन्तों की, अहिंसा के सेवकों की शान्त स्वर-लहरी से प्रतिध्वनित होकर, अध्यात्म-रस में डूब रही हों.
जैसे
क्या लिखूं. लिखना बहुत कुछ चाहता हूँ, परन्तु अत्र लिखा नहीं जाता. आज तो यह सब कुछ जैसे अनन्त अतीत की करुण कहानी बनकर शेष रह गया है. जैसे-जैसे अतीत में प्रवेश करता हूँ, स्वामी जी महाराज के मधुर जीवन की उन मधुर स्मृतियों को खोजने के लिए वैसे-वैसे चित्र मेरे स्मृति-पट पर अंकित होते जा रहे हैं. किन्तु क्या करूँ ? मैं अपने अन्तर मन की भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ.
स्वामीजी महाराज क्या थे उक्त प्रश्न का समाधान करने के लिए न मेरे पास कोई शब्द न कोई उपमा, और न कोई वस्तु ही है, जिसके तुल्य में उन्हें कह सकूँ. वे अपने जैसे आप थे. वे अपने ढंग के निराले थे, अद्भुत थे और असाधारण भी थे. इसलिए वे हमसे विशिष्ट थे.
'आओ' श्राप और हम सब मिलकर एक स्वर से उस विमल विभूति के सद्गुणों का कीर्तन करलें.
श्री गुलाबचन्द्र मुणोत, अजमेर
नमन हो मेरे कुल रत्न को
स्वर्गीय पूज्य मुनि श्रीहजारीमलजी म० की और मेरी जन्मभूमि एक ही थी. उनसे मेरा पारिवारिक दृष्टि से निकटतम संबंध था. संसार पक्ष से वे मेरे काका सा० थे. तथापि मैं कई वर्षों तक उनके पुण्यदर्शनों से वंचित रहा. उसका मुख्य कारण यह था कि मेरे जन्म से ६ वर्ष पूर्व ही आपने वि० सं० १६५४ में ही जिनदीक्षा ग्रहण कर ली थी. दस वर्ष की अल्पायु में अध्ययन के हेतु मुझे जन्मभूमि से दूर चला जाना पड़ा.
मैं कभी-कभी चिन्तन करते हुए आश्चर्य में पड़ जाता हूँ कि इतने उच्च संस्कार आप में कैसे जागृत हुए ? स्पष्ट लगता है कि उनकी माता ही पुत्र के लिये सुसंस्कारों की जननी थीं और उनकी प्रेरणा से ही वे ऐसे विकट पथ को अपना कर त्याग मार्ग पर लगे थे.
प्रथम बार जब मुझे आपके दर्शन का सौभाग्य अजमेर में प्राप्त हुआ तो हृदय गद्गद हो गया. मैं सपरिवार आपके दर्शन निमित्त गया. मैंने प्रथमबार ही पाया कि आपके विचार उच्च हैं, शान्ति की आप सजीव प्रतिमा हैं, आपकी वाणी में मृदुता है, हृदय में कोमलता है, व्यवहार में कुशलता है.
मैं स्वर्गीय मुनि श्री हजारीमलजी म० को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपना गौरव समझता हूँ कि आपने अपने परिवार को ही नहीं किन्तु हजारों व्यक्तियों के जीवन को उज्ज्वल कर दिया. आप इतनी अल्पायु में त्याग मार्ग को अपना कर बाल ब्रह्मचारी रहे. आप अद्वितीय साहस के धनी थे. सहन-शीलता, धैर्य, एवं समदर्शित्व आदि आपके विशेष गुण थे.
उनके मन के विमल चिन्तन की ऊँचाई का कहाँ तक बयान किया जाय ? उन्हें सम्प्रदाय का आचार्य पद प्रदान करने का प्रस्ताव सब साधुओं व संघ द्वारा रखा गया था तथापि उन्होंने अस्वीकार कर दिया. एक विशेषता आपके जीवन में यह थी कि आप प्रशंसा से हर्षित और प्रतिकूल आलोचनाओं से क्षुब्ध नहीं होते थे. अपने कर्तव्य की ओर ही अग्रसर
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