Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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Jain Educatie
डॉ० के० ऋषभचन्द्र
एम० ए०, पी-एच० डी०
पउमचरियं के रचनाकाल सम्बन्धी कतिपय अप्रकाशित तथ्य
जैन साहित्य में ही नहीं अपितु सारे प्राकृत वाङ्मय में सम्पूर्ण रामकथा सम्बन्धी काव्यात्मक कृति होने का प्रथम श्रेय पउमचरियं को प्राप्त है, जो महाराष्ट्री प्राकृत में लिखा गया है—जैन परम्परा में आठवें बलदेव दाशरथी राम का अधिकतर प्रचलित नाम पउम (पद्म) है, अतः उनके चरित को 'पउमचरियं' की संज्ञा दी गई है । उत्तरोत्तर काल के जैन साहित्य में विविध भाषाओं में राम सम्बन्धी जो रचनाएँ उपलब्ध हैं वे अधिकतर पउमचरियं पर ही आधारित हैं. पउमचरियं के इस महत्त्व को देखते हुए उसके रचना-काल पर कुछ विचार-विमर्श करना उपादेय ही होगा. इस ग्रंथ के रचयिता विमलसूरि नाइलवंशीय विजय के शिष्य और आचार्य राहु के प्रशिष्य थे. उन्होंने पउमचरिय की प्रशस्ति में बतलाया है कि इस ग्रंथ की रचना महावीर - निर्वाण के ५३०१ (या ५२०) २ वर्ष पश्चात् की गई थी. ग्रंथ के अध्ययन से यह तिथि बिल्कुल असंगत ठहरती है. कितने ही विद्वानों ने इसके रचनाकाल के विषय में अपने-अपने मन्तव्य प्रकट किये हैं. कुछ लोग प्रशस्ति में अंकित समय को ही उचित मानते हैं परन्तु अधिकतर विद्वान् इसको तृतीय या चतुर्थ शताब्दी से लेकर सातवीं आठवीं शताब्दी तक की रचना ठहराते हैं. इन विद्वानों ने जिन-जिन प्रमाणों के आधार पर पउमचरिय का कालनिर्णय किया है उनको यहाँ पर दुहराने की आवश्यकता नहीं. हम पउमचरियं में ही उपलब्ध कुछ नवीन सामग्री पर विचार कर उसी के आधार पर पूर्वस्थापित विविध मन्तव्यों का ऊहापोह करते हुए इस ग्रंथ का काल - निर्णय करने का प्रयत्न करेंगे.
सर्वप्रथम पउमचरियं में वर्णित उन जनजातियों, राज्यों, व राजनैतिक घटनाओं पर विचार करेंगे जिनका भारतीय इतिहास से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है. राम ने जब वानरदल के साथ रावण पर आक्रमण किया तब केली गिलों और पत्तियों ने राम की सेना में सम्मिलित होकर उनकी सहायता की थी. (पउम०५५-१७). रविवेण ने अपने पद्मपुराण [ ५५-२६] में इन केलीगिलों को कैलीकिल बताया है. इन लोगों को ऐतिहासिक किलकिलों से मिलाया जा सकता है. उनके राज्य की समाप्ति के तुरन्त बाद वाकाटक विन्ध्यशक्ति ने [२२३ ई०] उनके स्थान पर दक्षिण में अपना राज्य स्थापित किया था. विमलसूरि श्रीपर्वत का बार-बार उल्लेख करते हैं. श्रीपर्वतीयों ने राम की सहायता
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१. पउमचरियं ११८. १०३.
२. उपमितिभवप्रपंचकथा में डा० जेकोबी की प्रस्तावना पृ० १०.
३. विएटरनिज र हिस्टर ऑव इण्डियन लिटरेचर, भा० २, पृ० ४७७ पा० टि० ३. हरदेव बाहरी - प्राकृत और उसका इतिहास, पृ० ६०. डा० जेकोबी - उपमितिभवप्रपंच कथा, प्रस्तावना, पृ० १० और परिशिष्टपर्व, प्रस्तावना पृ० १६.
डा० कथए हिस्टरि आव संस्कृत लिटरेचर, पृ० २५. पउमचरियं (१९६२) को प्रस्तावना में डा० वी० एम० कुलकर्णी का लेख - दी डेट आव विमलसूरि.
जैन युग, पुस्तक १, अंक ५, पोष १६८२, पृ० १८० पर श्री के० एच० भ्र व का लेख.
४. बी० वी० कृष्णराव - ए हिस्टरि श्रव दो अर्ली डाइनेस्टीज ऑव आन्ध्रदेश, पृ० ३६. ५. डा० अल्टेकर - दी वाकाटक-गुप्ता एज (१६५४), पृ० ८६.
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