Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८८६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
४. पशु-पक्षी सम्बन्धी कथाएं. ५. देव-दानव सम्बन्धी कथाएं. ६. जैन-साधु सम्बन्धी कथाएँ.
७. नीच कुलोत्पन्न मानव सम्बन्धी कथाएँ, आदि आदि. विषयानुसार कथाओं का वर्गीकरण इस प्रकार हो सकता है१. व्रत सम्बन्धी, २. त्याग सम्बन्धी, ३. दान सम्बन्धी, ४. सप्तव्यसन सम्बन्धी, ५. बारह भावना सम्बन्धी, ६. रत्नत्रय सम्बन्धी, ७. दश धर्म सम्बन्धी. ८. तीर्थयात्रा सम्बन्धी, ६. मंत्र संबंधी, १०. स्तोत्र सम्बन्धी, ११. रोग संबंधी, १२. परीक्षा विषयक, १३. त्यौहार सम्बन्धी, १४. चमत्कार सम्बन्धी, १५. शास्त्रार्थ सम्बन्धी, १६. भाग्य सम्बन्धी, १७. उपसर्ग सम्बन्धी, १८. स्वप्न सम्बन्धी, १६. यात्रा सम्बन्धी, २०. नीति विषयक, २१. तीन मूढता विषयक. २२. परीषह संबंधी, कथाएँ आदि आदि. किन्तु यह वर्गीकरण पूर्ण नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हजारों कथाओं के विषय परस्पर बहुत भिन्न हैं. जैन कथाओं का प्रारम्भ एवं अन्त जैन कथाओं का प्रारम्भ कथाकार प्राय: मंगलाचरण के साथ किया करते हैं, जिसमें जिनेन्द्रदेव अथवा सरस्वती की वन्दना करके कथा-नाम का संकेत भी दिया जाता है. कथा के प्रारम्भिक भाग में प्रमुख पात्र अथवा पात्रों के निवासस्थान का उल्लेख नियमित रूप से होता है. साथ ही साथ' पुण्यवान शासक [राजा एवं रानी] के नाम का भी सम्मान सहित उल्लेख कर दिया जाता है. कुछ शब्दों में उसकी शासन-व्यवस्था की भी प्रशंसा कर दी जाती है. कथा की समाप्ति होते होते प्रमुख पात्र पर विशेष आदर्शवाद [विरक्ति, भक्ति, तपस्या, आदि] का प्रभाव प्रकट हो जाता है और वह अपने कुत्सित मार्ग [यदि वह विलासी अथवा पापी होता था] को छोड़कर मोक्षमार्ग का पथिक बन जाता है. इस प्रकार कथा का अन्त उपदेशात्मक पंक्तियों के साथ हुआ करता है. जैन कथाओं की व्यापकता जैन कथाओं का विस्तार बहुत दूर तक हुआ है. कुछ कथाएँ तो ऐसी सुनने को मिली हैं जिनका उल्लेख पाश्चात्य देशों की कथाओं में भी हुआ है. सुप्रसिद्ध युरोपीय विद्वान् श्री सी० एच० टाने ने अपने 'ग्रंथ' ट्रेजरी आफ स्टोरिज की भूमिका में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि जैनों के 'कथाकोष' में संग्रहीत कथाओं व योरोपीय कथाओं में अत्यन्त निकट साम्य है.
१. (क) श्रीवीरं जिनमानम्य वस्तुतत्त्वप्रकाशकम् .
वक्ष्ये कथामयं ग्रन्थं पुण्याश्रवाभिधानकम्. (ख) नमो शारदा सार बुध करैं हरै अघ लेप.
निशभोजन भुजन' कथा, लिखू सुगम संक्षेप. (ग) तीनों योग सम्हार कर, बन्दों बार जिनेश,
रक्षा बन्धन' को कथा, भाषा करू विशेष. (घ) पंच परम गुरु वन्दिके, 'जम्बुकुमार' पुराण.
करू' पद्य रचना, भक्ति भाव कर पान. २. (क) जम्बूद्वीप में, पूर्व विदेह के अन्तर्गत श्रार्य खण्ड नामक स्थान में अवन्ती देश है, जिसमें सुसीमा नाम की एक नगरी है. उस नगर
का शासनकर्ता, वरदत्त नामक एक चक्रवर्ती सम्राट था. (ख) महाराज श्रेणिक सरदार, धर्मधुरंधर परम उदार. न्याय नीति बरते तिहुं काल, निर्भय प्रजा रहे सुखहाल.
-जंबू स्वामी चरित्र, पृ०६. .
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