Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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डा. गोवर्धन शर्मा
एम० ए०, पी-एच० डी० अध्यक्ष हिन्दी विभाग, गुजरात कालेज, अहमदाबाद
अपभ्रंश का विकास
मध्यभारतीय आर्यभाषा के विकास के अन्तिम सोपान को अपभ्रश के नाम से अभिहित किया जाता है. अपभ्रंश मध्यभारतीय आर्य भाषाओं और आधुनिक आर्य भाषाओं यथा-हिन्दी, बंगला, मराठी, गुजराती आदि के बीच की कड़ी है. प्रत्येक आधुनिक आर्य भाषा को अपभ्रंश की स्थिति पार करनी पड़ी है.' दूसरे शब्दों में इसे यों कहा जा सकता है कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं-यथा गुजराती, मराठी, हिन्दी, बंगाली, पंजाबी, सिन्धी, असमी, उड़िया आदि की जननी अपभ्रंश ही है.२ किन्तु अपभ्रंश शब्द का किसी भाषाविशेष के अर्थ में सदा प्रयोग नहीं होता रहा. हमें ईसा की दूसरी शती पूर्व से इस शब्द का प्रयोग विभिन्न अर्थों में किया हुआ मिलता है. हम आगे चल कर इस शब्द के इतिहास पर संक्षेप में विचार करेंगे. क्योंकि इस से हम को अपभ्रंश भाषा के उद्गम और विकास का सम्यक् वैज्ञानिक अध्ययन करने में पर्याप्त सहायता मिलेगी. अपभ्रंश शब्द का प्रयोग 'अपभ्रंश' शब्द का साधारण अर्थ होता है-भ्रष्ट, च्युत, स्खलित, विकृत अथवा अशुद्ध. भाषा के सामान्य मानदंड से जो शब्द-रूप च्युत हों, वे अपभ्रंश हैं. ऐसी धारणा से विकसित, एक विशेष भाषा की संज्ञा रूप में इस शब्द का व्यवहार अपने में बहुत-सी संभावनाएं छिपाये है. अतः इसी दृष्टिकोण से हम अपभ्रंश शब्द के प्रयोग की विगत श्रृखंलाओं को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं. अपभ्रश शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख हमें पतंजलि (ईस्वी पूर्व दूसरी शती) से कुछ शताब्दी पूर्व मिलता हैं ४. 'वाक्यपदीयम्' के रचयिता भर्तृहरि ने महाभाष्यकार के पूर्ववर्ती संग्रहकार व्याडि नामक आचार्य के मत का उल्लेख करते हुये अपभ्रंश शब्द का निर्देश किया है. यथा
शब्दसंस्कारहीना यो गौरिति प्रयुयुक्षिते । तमपभ्रशमिच्छन्ति विशिष्टार्थनिवेशिनम् ।
१. डा० उदयनारायण तिवारी-हिन्दी भाषा का उद्गम और विकास-पृ० १२० । २. मुनि जिनविजय-उमसिरिचरिउ, किंचित् प्रास्ताविक पृ० १
भारतवर्षनी आर्यवर्गनी देश्यभाषाओना विकासक्रमनो जेमने थोडो पण परिचय छ, तेओ जाणे छे के अपभ्रंश नामे ओलखाती जूनी भाषा, आपणा महान् राष्ट्रमांनी वर्तमान गुजराती, मराठी, हिन्दी, पंजाबी लिन्धी, बंगाली, असमी, उड़िया विगेरे भारतनां पश्चिम,
उत्तर अने पूर्व भागोमां बोलातों प्रसिद्ध देशभाषाओनी सगी जननी छे. ३. नामवरसिंह, हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, पृ० २. ४. डा०हरिवंश कोछड़, अपभ्रश साहित्य, पृ०१.
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