Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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६१६ : मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
दसवीं शताब्दी के मध्य तक उन्हें चालुक्यों के कारण भीनमाल छोड़ने को बाध्य होना पड़ा. परिणाम स्वरूप ६५८ ई० में १८,००० गुर्जरों ने सामूहिक रूप से एक साथ भीनामाल छोड़कर देशान्तर किया.' इन गुर्जरों के अतिरिक्त अन्य पशु पालक एवं यायावर जातियों के द्वारा भी अपभ्रंश को प्रसार सुविधायें मिली होंगी. कुछ भी हो, अपभ्रंश अपनी प्रारंभिक अवस्था में चाहे इनकी बोली रही हो, पर बाद में वह धीरे-धीरे सारे भारत की भाषा हो उठी. यह भाषा मूलतः जनता की वन चली थी और विदेशी नहीं थी
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१. ( क ) भण्डारकर : आन गुर्जर: J. B. B. R. AS Vol. 21, Page 412
(ख) जेक्सन: बोम्बे गजेटियर भाग-१, पृ० ४६५-६६, दिवेटिंया : गुजराती लैंग्वेज एण्ड लिटरेचर में पृ० ३५ पर उद्घृत.
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