Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 1050
________________ लेखक-परिचय श्री अगरचन्द नाहटा-जन्मस्थान-बीकानेर (राजस्थान)। नाहटा जी ने जितने विपुल साहित्य का सर्जन किया है, उतना कोई विरले ही कर पाते हैं। अढ़ाई सौ पत्र-पत्रिकाओं में दो सहस्र से अधिक निबंध लिख चुके हैं । राजस्थानी एवं जनसाहित्य के गिने-चुने साहित्य-सेवियों में अन्यतम हैं । दर्जनों ग्रन्थों का सम्पादन कर चुके हैं। अपने ज्येष्ठ भ्राता श्री अभयराज नाहटा के नाम पर अभय जैन ग्रंथालय की संस्थापना की है, जिसमें बीस हजार दुर्लभ महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित और इतने ही मुद्रित ग्रंथों का संग्रह है। जैनसंघ की ओर से 'साहित्य एवं इतिहासरत्न' की उपाधि दिया जाना आप की योग्यता के अनुरूप ही है। आप भारत की पचासों साहित्यिक संस्थाओं के अध्यक्ष, डाइरेक्टर, ट्रस्टी या सदस्य हैं । व्यवसाय के हाथ महान् साहित्यसेवा का आदर्श कोई नाहटा जी से सीखे। श्री अनूपचन्द न्यायतीर्थ-आप जयपुर-निवासी हैं। जैनसाहित्य, पुरातत्त्व और कविता की ओर विशिष्ट रुचि । गीताञ्जलि के बहुसंख्यक गीतों के अनुवादक । आपकी अनेक अनूदित रचनाएँ प्रकाशित हैं । सुप्रसिद्ध विद्वान् पं० चैनसुखदासजी के प्रमुख शिष्य हैं। पं० अम्बालालजी जन्मस्थान दहेगाम (अहमदाबाद) । इस समय आप अहमदाबाद के ला० द० भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर में कार्य कर रहे हैं । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं तथा व्याकरण, साहित्य, इतिहास-पुरातत्त्व और मंत्रसाहित्य में आपकी गहरी दिलचस्पी है । दिग्विजयमहाकाव्य, कालकाचार्यकथासंग्रह, सूरिमंत्रकल्पसन्दोह, मंत्रराजरहस्य, अनुभूतसिद्धद्वात्रिंशिका आदि-आदि ग्रंथों का सम्पादन किया है। अभी-अभी आपका Catalouge of Sanskrit and Prakrit MSS, part I नामक ग्रंथ प्रकाशित हुआ है। डा० श्रानन्दप्रकाश दीक्षित-जन्मस्थान मेरठ (उ० प्र०)। सन् १९४८ से आप अध्यापन कार्य कर रहे हैं । वर्तमान में राजस्थान विश्वविद्यालय में रीडर हैं। आपका रससिद्धान्त उत्तरप्रदेश की सरकार द्वारा पुरस्कृत हुआ है । सौन्दर्यतत्त्व, वेलि क्रिसन रुक्मणी री, तुलसीदास-वस्तु और शिल्प आदि अनेक गंभीर रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। मराठी, गुजराती, बंगला और उर्दू भाषाओं के भी ज्ञाता हैं । शोध-छात्रों के सुयोग्य निर्देशक हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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