Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 1059
________________ १०६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : परिशिष्ट Jain Education International श्रीमहावीर कोटिया जन्मस्थान हरसाना (अलवर राजस्थान ). पढ़ना और लिखना दोनों ही आपके व्यसन हैं. आपका 'टूटी वीणा' नामक कवितासंग्रह प्रकाशित हो चुका है. कविता और कहानी के क्षेत्र से निकल कर इधर आप सारगर्भित शोधपरक और ज्ञानवर्द्धक लेख लिखने की ओर मुके हैं. 'जैनसाहित्य में कृष्णवार्त्ता' विषय पर शोध लिख रहे हैं. जयपुर से प्रकाशित होने वाली 'जैन संगम' पत्रिका के सम्पादक हैं. श्री मिलापचन्द्र कटारिया आप केकड़ी (राज.) के निवासी हैं। व्याकरण, छन्द, काव्य तथा जैन सिद्धान्त ग्रंथों के तलस्पर्शी पण्डित होते हुए भी स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं । अच्छे चिन्तक, वक्ता और लेखक हैं । 'जैनधर्म श्रेष्ठ क्यों हैं ?' नामक पुस्तक के तथा अनेकानेक प्रकीर्णक निबंधों के लेखक हैं । केकड़ी में अपने तत्त्वचर्चा एवं गोष्ठी के अत्यन्त स्पृहणीय वातावरण का सर्जन किया है । डा० श्री मोहनलाल मेहता जन्मस्थान-कानोड़ (राज०) जैन ब्यावर में माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कर पार्श्वनाथ विद्याश्रम बनारस में रहे । एम०ए० पी० एच० डी० तथा शास्त्राचार्य उपाधियाँ प्राप्त की । 'जैनदर्शन हिन्दी में तथा Outlines of Jain Philosophy' Jain Psychology एवं Outlines of karma in Jainism नामक ग्रंथ अंगरेजी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं। इस विद्वान् साहित्यकार से भविष्य में बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं । डा० मंगलदेव शास्त्री - वैदिक साहित्य और प्राचीन भारतीय संस्कृति के विशेषज्ञ के रूप में विख्यात हैं । आप भारत के उन गिने-चुने लब्धप्रतिष्ठित विद्वानों में हैं जिन्होंने प्राच्य और पाश्चात्य दोनों पद्धतियों से ज्ञान और समाज का अध्ययन किया है । वैदिक साहित्य, भाषाविज्ञान, भारतीय संस्कृति आदि विषयों पर आपने अनेक अनुसंधानात्मक तथा विचारात्मक ग्रंथ लिखे हैं । " रश्मिमाला", "अमृतमंथन, “प्रबंधप्रकाश" जैसी आप की गद्यपद्यात्मक मौलिक रचनाएँ संस्कृत-जगत में काफी प्रसिद्ध हैं । प्रारम्भ में संस्कृत और भारतीय दर्शन का अध्ययन करने के पश्चात् १६२२ में आपने आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी० फिल० की उपाधि अर्जित की । विदेश से लौटने पर १६२३-२४ में एक वर्ष तक काशी विद्यापीठ, बनारस में दर्शन का अध्ययन किया, १९२४ में गवर्नमेंट संस्कृत कालिज बनारस में सरस्वती भवन के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए और १९३३ में उत्तरप्रदेशीय राजकीय संस्कृत परीक्षाओं के रजिस्ट्रार बनाये गये । १९३७ में आप गवर्नमेंट संस्कृत कालिज के बनारस के प्रिंसिपल पद पर आसीन हुए और संस्कृत पाठ्यक्रम में आधुनिक विषयों का समावेश कराने में सफल हुए । वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय की योजना भी आपने ही १६४६-५० में तैयार की थी । १९६० में आप केन्द्रीय संस्कृत बोर्ड के सदस्य और १९६१ में वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय के अन्तरिम कुलपति नियुक्त हुए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066