Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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प्रो० श्रीचन्द्र जैन : जैन कथा-साहित्य : एक परिचय : ८८७
उनके विचार से यह अधिक संभव है कि जिन योरोपीय कथाओं में यह साम्य मिलता है उनमें से अधिकांश भारतीय कथा साहित्य [विशेषतः जैन कथा साहित्य] के आश्रित हों. प्रोफेसर मैक्समूलर बेन्के तथा राइस डेविड्स ने अपने ग्रंथों में इस बात के काफी प्रमाण दिये हैं कि भारतीय बौद्ध कथाएँ लोक कठों के माव्यम के परसिया से यूरोप गईं. प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि जैन कहानियां इतने दूर-दूर के प्रदेशों में कैसे पहुँचीं, जब कि जैनधर्म का विस्तार भारत तक ही सीमित है ? इसके उत्तर में हम यही कहेंगे [और यह सच है कि ये कहानियां जैनों द्वारा नहीं, बल्कि बौद्धों द्वारा सुदूर प्रदेशों में ले जाई गई हैं. क्योंकि जैन और बौद्ध, दोनों ने ही ज्ञानोन्नति एवं प्रचार से उद्देश्य से पूर्वीय भारत की लोक-कथाओं का समुचित उपयोग किया है.१ अनेक जैन कथाएँ ऐसी हैं जो कुछ अन्तर [परिवर्धन एवं परिवर्तन] के साथ वेदों और पुराणों में भी प्राप्त होती हैं. आचार्यों ने अपने अपने मतों की पुष्टि अथवा समर्थन के लिए यदि कथाओं में कुछ परिवर्तन कर दिया हो तो आश्चर्य की बात नहीं है. एक साधारण कथा जब धर्मविशेष की परिधि में पहुँच जाती है तब वह उस धर्म की भावना से प्रभावित होकर ही बाहर निकलती है. भगवान राम तथा कृष्ण विषयक जैन कथाएँ भी उपलब्ध हैं, लेकिन उनमें और वैदिक कथाओं में असाधारण अन्तर आ गया है. ऐसी स्थिति में यह कहना कठिन हो जाता है कि ये कथाएँ जैन साहित्य से अन्य धर्म में पहुँची हैं अथवा जैन कथाकारों ने इन्हें अन्यत्र से उपलब्ध किया है. विदेशों की लोक-कथाओं के अनुशीलन से ज्ञात होगा कि अनेकों जैन-कथाओं ने सागरों को पार करके वहां की मान्यताओं की वेश-भूषा से अपने को अलंकृत कर लिया है, लेकिन उनका मूलभूत स्वरूप प्रकट हो कर ही रहता है..
कथानों में तात्कालिक समाज का चित्रण यद्यपि इन कथाओं का लक्ष्य सामाजिक अथवा राजनीतिक वातावरण को अंकित करना नहीं है, फिर भी इनमें ऐसे अनेक विवरण सम्मिलित हैं जिनके माध्यम से पाठक तत्कालीन सामाजिक स्थिति का सहज ही अध्ययन कर लेता है. मानव की स्वाभाविक वृत्तियों का न कभी नाश हुआ है और न होगा. वह सौन्दर्य-प्रेमी होता है और इसीलिए मनमोहक सुन्दरता की ओर स्वतः आकर्षित हो जाता है. अनेक कथाओं में प्रदर्शित किया गया है कि अमुक राजा या धनिक या सम्पन्न व्यक्त्ति अमुक किसी सुन्दर स्त्री पर मोहित हो गया और उसकी प्राप्ति के लिए अनेक उपाय भी करने लगा, लेकिन देवी-देवताओं ने सती की पुकार सुनी और वह नराधम अपने कुकर्म के लिए दण्डित किया गया. उस समय यातायात के साधन सीमित थे और व्यापारी बैलों, घोड़ों ऊँटों तथा जहाजों के द्वारा ही अपने व्यवसाय को समुन्नत बनाते थे. लेकिन संरक्षण का पूर्ण प्रबन्ध न होने से वनों, पहाड़ों तथा निर्जन स्थानों में वे धनिक व्यापारी अक्सर चोरों और डाकुओं द्वारा लूट लिए जाते थे. अपराधों की वृद्धि को रोकने के लिए तत्कालीन शासक बड़ा कठोर दण्ड देते थे. चोरी के लिए प्राचीन काल में शूली की सजा दी जाती थी. कन्याएँ विविध कलाओं का अध्ययन करके अपनी इच्छानुसार अपने जीवन साथी का चुनाव करने में स्वतन्त्र थी. वे कठिन परीक्षाओं में सफल युवकों को ही अपना पति बनाना चाहती थीं [देखिए जयकुमार-सुलोचना आदि की कथा]. समृद्धि और विलासिता के झूलों में भूलते हुए भी मानवों का मानस एक साधारण घटना से प्रभावित हो जाता था और वे संसार का परित्याग करके आत्मोद्धार में संलग्न हो जाते थे. जलधर को अनन्त आकाश में विलीन होते देखकर अथवा एक श्वेत केश के दर्शन मात्र से इन्सान का मन विरक्त हो जाया करता था. बहुपत्नी-प्रथा का प्रचलन उस पुरा
१. जैन लोक-कथा-साहित्य--श्रीमती मोहिनी शर्मा. २. श्रीपाल को सागर विपै जब सेठ गिराया,
उसकी रमा से रमने को आया वो बेहया. उस वक्त के संकट में सती तुमको जो ध्याया, दुखदंड फन्द मेटके आनन्द बढ़ाया. -संकटमोचन विनती.
PARTPHANT
Aणा
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